कांग्रेस को बड़ा झटका

Last Updated 12 Mar 2020 12:22:18 AM IST

युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है।


कांग्रेस को बड़ा झटका

इस घटना ने कांग्रेस की न केवल बुनियादी कमजोरियों को नये सिरे से उजागर कर दिया है, बल्कि उसने पार्टी को अंदरूनी तौर पर और ज्यादा कमजोर कर दिया है। हालांकि कांग्रेस इस घटना के लिए भाजपा को आरोपित कर रही है, लेकिन सच तो यह है कि यह कांग्रेस की ही कमजोरी का परिणाम है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया की गिनती कांग्रेस के एक बड़े नेता के तौर पर होने के साथ-साथ पार्टी के एक भावी स्तंभ के तौर पर भी होती थी। उन्होंने स्वयं को विरासत में निकली राजनीति के आधार पर स्थापित नहीं किया था, बल्कि अपनी प्रतिभा, वक्तृत्व कला और अपने राजनीतिक कौशल से किया था। सिंधिया कांग्रेस के उन नेताओं में से थे जिन्हें लेकर पिछले अठारह वर्षो से कोई अनावश्यक विवाद खड़ा नहीं हुआ। मध्य प्रदेश में उनकी लोकप्रियता निर्विवाद थी। दिसम्बर, 2018 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद यह माना जा रहा था कि सिंधिया प्रदेश में प्रत्यक्ष नेतृत्व की भूमिका में होंगे।

लेकिन कांग्रेस पार्टी की ताकतवर बुजुर्ग लॉबी ने ऐसा नहीं होने दिया। उनका तर्क यह था कि युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास अभी बहुत से अवसर हैं, लेकिन बुजुर्ग कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के लिए ज्यादा अवसर नहीं हैं। इसलिए कमलनाथ को प्राथमिकता देते हुए प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। वास्तव में होना यह चाहिए था कि भाजपा की तर्ज पर पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया जाता और नये नेतृत्व को उभरने का मौका दिया जाता। इस राजनीतिक प्रयोग से कांग्रेस को नई ऊर्जा और संजीवनी प्राप्त होती। लेकिन गांधी परिवार के दबाव या प्रभाव के नीचे यह संभव नहीं हुआ।

जाहिर है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में घुटन महसूस हुई होगी और जिसकी परिणति उनके कांग्रेस छोड़ने के रूप में हुई। उनके कांग्रेस छोड़ने के बाद कमलनाथ की सरकार मुश्किल में आ गई है। सिंधिया समर्थक बाइस विधायकों  ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि कमलनाथ ने दावा किया है कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि वह अपनी सरकार बचा पाएंगे। सिंधिया की घटना से कांग्रेस को सबक लेना चाहिए और अगर अब भी कांग्रेस ने अपनी रीति-नीति नहीं बदली तो कहा जा सकता है कि सिंधिया प्रकरण अंतिम नहीं होगा।



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