अफगानिस्तान पर चिंता
अफगानिस्तान की घटनाएं निश्चित रूप से भारत और पूरी दुनिया के लिए चिंता पैदा करने वाली हैं। राजधानी काबुल में अशरफ गनी के शपथ ग्रहण करने के बीच कुछ दूरी पर हुए धमाके ने संकेत दे दिया है कि आगे की राह कितनी कठिन है।
![]() अफगानिस्तान पर चिंता |
दो धमाकों तथा गोली चलने से लोगों के बीच स्वाभाविक ही हड़कंप पैदा हो गया था लेकिन गनी ने वहां मौजूद लोगों का हौसला बढ़ाते हुए अपना संबोधन जारी रखा। आईएस जैसे आतंकी संगठन ने इसकी जिम्मेवारी ली है। अफगानिस्तान का संकट बहुआयामी है। एक ओर गनी ने शपथ ली तो दूसरी ओर एकता सरकार में मुख्य कार्यकारी अधिकारी रहे अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने भी स्वयं को राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
चुनाव आयोग ने यद्यपि सितम्बर में गनी को विजेता घोषित कर दिया था, लेकिन अब्दुल्ला-अब्दुल्ला का कहना है कि चुनावों में धांधली कर उनको जीत दिलवाई गई है। तालिबान अमेरिका समझौते के प्रावधानों को अमल में लाना वैसे ही कठिन हो रहा है और उसमें आंतरिक राजनीति में ऐसी मोर्चाबंदी हो गई तो फिर अफगानिस्तान को नये किस्म की अस्थिरता में फंसने से कोई बचा नहीं सकता।
अमेरिका अफगानिस्तान समझौते के बाद हुए हमलों में करीब 100 लोग मारे जा चुके हैं। पहले तालिबान ने हमला किया तो उसके जवाब में अमेरिकी बलों ने हमला किया और उसके बाद आईएस ने इस बीच का सबसे बड़ा हमला किया। हमले और हिंसा का क्रम जारी रहने के बीच अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने भविष्य के लिए तमाम आशंकाएं पैदा कर दी हैं। हालांकि गनी ने अपना रु ख बदलते हुए समझौते के अनुसार तालिबान कैदियों को रिहा करने का आदेश दे दिया है।
बदले में तालिबान भी कैदियों को रिहा करेंगे। किंतु इस समझौते में आपसी विश्वास की पूरी कमी है। एक ओर राष्ट्रपति चुनाव परिणाम को लेकर तीखा आतंरिक राजनीतिक संघषर्, दूसरी ओर तालिबान की सत्ता पाने की लालसा तथा तीसरी ओर आईएस का हिंसा करने का क्रम..। इनमें अफगानिस्तान का भविष्य क्या होगा इसका अनुमान लगाना कठिन है। जाहिर है, भारत के लिए कठिन स्थिति पैदा हो रही है। हमने वहां लोकतंत्र, शांति एवं पुनर्निर्माण के लिए काफी कुछ किया है और अभी भी कर रहे हैं। लेकिन वहां की बिगड़ती स्थिति में हमारी सक्रिय भूमिका के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो जाएगी।
Tweet![]() |