शांति ही विकल्प

Last Updated 26 Feb 2020 05:35:13 AM IST

राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा और आगजनी ने निस्संदेह, पूरे देश को चिंतित किया है। हिंसक दंगे में सात लोगों का मारा जाना सामान्य तौर पर अविश्वसनीय है।


शांति ही विकल्प

राजधानी देश की श्रेष्ठतम सुरक्षा व्यवस्था वाला शहर है। यहां असामाजिक-सांप्रदायिक हिंसक तत्व इस तरह कानून व्यवस्था को धत्ता बताते हुए मनमानी करने में सफल हो रहे हैं, तो पहली नजर में पुलिस की शर्मनाक विफलता है। जिस तरह उत्तर पूर्वी दिल्ली में कई समूहों ने जगह-जगह सड़कों पर कब्जा कर धरना देने में सफलता पाई उससे लगा ही नहीं कि राजधानी की पुलिस का कोई इकबाल भी है।

जाफराबाद में जिस समय सड़क पर कब्जा करने वालों की संख्या कम थी उसी समय उसे तितर-बितर कर दिया जा सकता था। समझ से परे है कि पुलिस ने ऐसा क्यों नहीं किया। कुछ लोगों का समूह पूरी दिल्ली की कानून-व्यवस्था को चुनौती देता रहे और पुलिस प्रभावी शक्ति के साथ समय पर सक्रिय ही नहीं हो तो परिणाम ऐसा ही आएगा। एक कांस्टेबल की शहादत हो गई तथा काफी संख्या में पुलिस वाले घायल हुए जिनमें बड़े अधिकारी भी शामिल हैं।  इसका पहला निष्कर्ष यही है कि दिल्ली पुलिस ने शाहीनबाग से सबक नहीं लिया। वहां से सबक लेकर प्रमुख स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था की जाती तो ऐसी नौबत आती ही नहीं।

यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि इसके पीछे सुनियोजित साजिश है, लेकिन इसके आधार पर पुलिस अपनी विफलता नहीं ढंक सकती। खुफिया विभाग को ऐसी किसी साजिश की भनक न लगने का अर्थ क्या है? शनिवार को ही लगने लगा था कि राजधानी की स्थिति बिगाड़ने की साजिश चल रही है। रविवार को पथराव आरंभ हो गया था, कुछ आगजनी भी हो गई लेकिन पुलिस की सुरक्षा योजना नहीं दिखी। उपद्रवी वाहन जलाते रहे, पेट्रोल पंप में आग लगाते रहे, घरों पर हमले करते रहे। उम्मीद करनी चाहिए कि कम से कम अब पुलिस अपना इकबाल दिखाएगी।

समाज को भी सोचना पड़ेगा कि ऐसे हिंसक तत्व केवल हमें क्षति ही पहुंचा सकते हैं। उन लोगों को भी अपने रवैये पर पुनर्विचार करना चाहिए जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जानबूझकर झूठ और गलतफहमी पैदा कर लेगों को आंदोलन करने के लिए उकसाया। हिंसा और सांप्रदायिकता केवल बर्बादी लाएगी। सबको शांति और सद्भावना कायम करने के लिए आगे आना होगा।



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