राजपक्षे की यात्रा
श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे का तीन दिवसीय भारत यात्रा द्विपक्षीय संबंधों की दृष्टि से कई मायनों में महत्त्वपूर्ण माना जाएगा।
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राजपक्षे ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के तौर पर भारत का चयन किया यह अपने-आप दर्शाता कि उनकी सोच में हमारा महत्त्व क्या है?
महिंदा 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे। आरंभ में उस समय श्रीलंका के साथ संबंध बेहतर रहे, लेकिन लिट्टे को खत्म करने के लिए उन्होंने जो सैन्य अभियान चलाया; उसमें जिस तरह आम तमिलों के साथ क्रूरता, अत्याचार और र्दुव्यवहार हुए उससे संबंध बिगड़ गए। महिंदा धीरे-धीरे चीन की ओर झुकते गए। मोदी सरकार आने के बाद भारत ने विपक्षी नेताओं से संपर्क कर उनके बीच एकता कराई और वे चुनाव में विजय हुए।
राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना तथा प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसंघे के कार्यकाल में श्रीलंका चीन के चंगुल से निकलकर भारत के साथ पुरानी मित्रता की पटरी पर लौट आया था। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब भी श्रीलंका गए उन्होंने महिंदा से भी मुलाकात कर उनसे संवाद बनाए रखा। राजनीतिक वनवास के काल में भी महिंदा कई बार भारत आए। महिंदा राजपक्षे के भाई गोताबाया के राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचन के बाद यह आशंका फिर बलवती हुई कि उनका झुकाव चीन की ओर होगा। लेकिन गोताबाया ने भी अपनी विदेश यात्रा की शुरु आत भारत से ही की। इससे यह आशंका कमजोर हुई।
भारत ने उनकी विजय के साथ ही अपनी कूटनीति को काफी तेज कर दिया। महिंदा ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा भी कि वो मोदी के पड़ोसी प्रथम की नीति का स्वागत करते रहे हैं। भारत द्वारा श्रीलंका की सुरक्षा एवं आतंकवाद से संघर्ष में लगातार साथ दिए जाने का उनका बयान काफी महत्त्वपूर्ण है। जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा दोनों देशों के बीच रक्षा, क्षेत्रीय सुरक्षा, निवेश और व्यापार के मुद्दों पर बातचीत हुई।
भारत तमिल समस्या से आंखें नहीं मोड़ सकता, इसलिए मोदी ने स्वयं इस पर बातचीत की। उन्होंने कहा भी हमें पूरी उम्मीद है कि श्रीलंका में तमिल समुदाय की उम्मीदों को पूरा किया जाएगा। माना जा सकता है महिंदा भारत से एक भरोसेमंद मित्र एवं सहयोगी की धारणा को लेकर श्रीलंका वापस गए और इसका सकारात्मक असर निश्चय ही हमारे संबंधों पर कायम रहेगा।
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