कानून-व्यवस्था पर सवाल

Last Updated 04 Feb 2020 12:33:54 AM IST

लखनऊ में एक हिंदूवादी नेता की दिनदहाड़े हत्या प्रदेश की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़ा करती है।


कानून-व्यवस्था पर सवाल

पिछले अक्टूबर में एक हिंदू नेता की हत्या में जिहादी तत्वों का हाथ सामने आया था और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई चल रही है। उसके बाद यह माना गया था कि इस तरह के नेताओं की सुरक्षा की व्यवस्था प्रदेश सरकार करेगी और आगे ऐसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी। जिस तरह से रंजीत बच्चन को सुबह टहलते समय आराम से रोककर गोली मारी गई, उससे पता चलता है कि हत्यारे को किसी का भय ही नहीं था। पुलिस का दावा है कि सीसीटीवी फुटेज में उसका चेहरा सामने आया है।

उसके सिर पर इनाम भी रखा गया है। संबंधित थाने के पुलिस वाले निलंबित किए जा चुके हैं। प्रश्न उठता है कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार किसे माना जाए? कानून और व्यवस्था की एजेंसियां जिनके जिम्मे सुरक्षा व्यवस्था है मुख्य जिम्मेदारी उनके सिर ही आती है। वैसे जो रिकॉर्ड सामने आया है उसके अनुसार रंजीत ने कभी अपने लिए सुरक्षा नहीं मांगी थी। लेकिन एक हिंदूवादी नेता के रूप में ही नहीं छात्र नेता से लेकर और लंबी साइकिल यात्रा पर प्रदेशवासियों के लिए उनका नाम जाना पहचाना था। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी उनका नाम अंकित है।

एक समय वह समाजवादी पार्टी में भी थे। जाहिर है इतने सक्रिय व्यक्ति की हत्या होना निश्चय ही चिंताजनक और दुखद है। हम किसी के विचार से सहमत भले नहीं हो, लेकिन हिंसा का समर्थन किसी सूरत में नहीं किया जा सकता है। अभी यह कहना मुश्किल है कि इस हत्या के पीछे कारण क्या है। हो सकता है कारण वही हो जो कमलेश तिवारी हत्याकांड में था। हो सकता है वह कारण नहीं हो। यह भी संभव है दो शादियां होने के कारण जो विवाद चल रहा था उसकी भूमिका भी हो। लेकिन किसी परिस्थिति में प्रदेश सरकार को जिम्मेवारी से मुक्त नहीं किया जा सकता है।

अगर राजधानी के पॉश इलाके में किसी व्यक्ति की इतनी आसानी से हत्या हो सकती है तो फिर दूरदराज इलाके की हालत क्या होगी इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। प्रदेश पुलिस प्रशासन को अपनी पूरी कार्यशैली और सुरक्षा व्यवस्था पर नये सिरे से विचार की जरूरत है। कमलेश तिवारी हत्याकांड के बाद जो खबर आई थी उसके अनुसार ऐसे लोगों को चिह्नित करके सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की गई थी। बावजूद इसके अगर हत्यारे अपने इरादे में सफल हो गए तो जाहिर तौर पर न समीक्षा समग्र थी और न उसके आधार पर की गई सुरक्षा संपूर्ण।



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