बजट के बाद
आम बजट में टैक्सपेयर्स चार्टर की बात वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की है; मतलब करदाता अधिकारपत्र।
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क्या है इसका आशय, क्या होगा इसमें और इससे करधारकों की स्थिति पर क्या असर पड़ेगा। यह सवाल महत्त्वपूर्ण है। नरेन्द्र मोदी सरकार धन निर्माताओं के सम्मान की बात करती है। देखा जाएगा कि आखिर करदाता अधिकारपत्र क्या ठोस सामने रखता है? ‘विवाद से विश्वास’ नामक एक योजना की घोषणा बजट में की गई है। इसमें ऐसा प्रस्ताव है कि 31 मार्च, 2020 से पहले जो करदाता विवादित राशि का भुगतान कर देते हैं, तो उन्हें दंडराशि या ब्याज का भुगतान नहीं देना होगा। सवाल यह है कि विवाद तो कर राशि पर है, कितना देना है कितना नहीं देना है।
अब सरकार कह रही है कि वो दे दो। दे ही दिया तो विवाद किस बात का था? कुल मिलाकर अब समय है कि कर व्यवस्था पर गंभीर विमर्श हो कि आखिर इतने विवाद होते क्यों हैं? करीब 8 लाख करोड़ की रकम प्रत्यक्ष कर विवादों में उलझी है। लगभग 8 माह के वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) संग्रह जितनी रकम विवाद में हो तो पता चलता है कि कर व्यवस्था में गंभीर खामियां हैं। नये कर प्रस्तावों में एक विकल्प यह भी है कि कोई करदाता कोई कर छूट नहीं ले। सरकार हर कर छूट को खत्म करना चाहती है।
देखने में यह आता है कि धारा 80 सी की कर छूटों के चलते कई लोग कई बार इंश्योरेंस बीमा में रकम लगा देते हैं, सामाजिक सुरक्षा हो जाती है। अब कोई बंदिश नहीं है, लोग ज्ञान की वजह से बीमा कराएं, दबाव की वजह से नहीं। सवाल यह है कि क्या भारत में लोग ज्ञान प्रेरित बीमा कराएंगे? बीमा कंपनियों को तो प्रत्यक्ष रूप से अपने कारोबार के लिए खतरा दिख रहा है। जीवन बीमा कंपनियों के शेयर बुरी तरह से पिटे हैं। केंद्र सरकार के कर संग्रह में सुस्ती दिख रही है। इसकी एक वजह जीएसटी संग्रह की सुस्ती भी है।
अभी कुछ दिन पहले केंद्र सरकार को जीएसटी संग्रह में तमाम वजहों से बहुत दिक्कतें पेश आ रही हैं। अभी पंद्रहवें वित्त आयोग के हवाले से एक आंकड़ा आया कि जीएसटी संग्रह में कर चोरी आदि की वजह से सरकार को करीब सालाना पांच लाख करोड़ रु पये गंवाने पड़ रहे हैं। पांच लाख यानी औसतन पांच महीनों के संग्रह के बराबर की राशि कर चोरी, लीकेज में जा रही है, इस सवाल का जवाब भी तलाशा जाए। साथ ही उन उपायों की भी तलाश की जाए, जिसका फायदा उठाकर सरकार को चूना लगाया जा रहा है।
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