बर्दाश्त नहीं, जहरीले बोल

Last Updated 31 Jan 2020 06:46:22 AM IST

चुनाव आयोग ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर एवं सांसद प्रवेश वर्मा के खिलाफ जो कार्रवाई की है उसका आम तौर पर स्वागत हुआ है।


बर्दाश्त नहीं, जहरीले बोल

मंत्री होने के नाते अनुराग ठाकुर को अपने एक-एक शब्द का ध्यान रखना चाहिए। हालांकि उन्होंने जो नारे लगवाए वे नये नहीं हैं। देश में ऐसे नारे लगते रहे हैं। निचले स्तर का कार्यकर्ता लगाए तो समझ में आता है, लेकिन कोई केंद्रीय मंत्री ऐसा नारा लगवाए, जिसमें गाली का प्रयोग हो तो यह शर्मनाक है। हम यह भी मानते हैं कि उसमें किसी समुदाय का नाम नहीं था और अनुराग ठाकुर का इरादा भी ऐसा नहीं रहा होगा। कारण, जेएनयू से लेकर अन्यत्र भी देशद्रोही नारा लगाने वालों में सभी समुदाय के लोग शामिल थे। बावजूद इस प्रकार का नारा चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। किसी परिस्थिति में कोई स्टार प्रचारक गाली-गलौच वाले शब्द का प्रयोग नहीं कर या करवा सकता है। भाजपा के नेताओं का तर्क है कि उन्होंने तो केवल ‘देश के गद्दारों कहा’ और जनता ने उस पर नारा लगाया ‘गोली मारो...को’। क्या ठाकुर को पता नहीं था कि इस नारे में यह शब्द प्रयोग किया जाएगा?

इसी तरह प्रवेश वर्मा सांसद हैं और पहली बार सांसद नहीं बने हैं। इस ढंग से चुनाव के दौरान सार्वजनिक रूप से डराना कि जिस तरह कश्मीर में हिन्दुओं के साथ हुआ; उसी तरह तुम्हारे साथ होगा को क्या कहा जाएगा? यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत सांप्रदायिक भावना भड़काने की श्रेणी में आएगा। इसे सहन करना चुनाव की स्वच्छता और निष्पक्षता पर ग्रहण लगाना हो जाता। हालांकि हम यह नहीं कहते कि दूसरे पक्ष एकदम दूध के धुले हैं। मुस्लिम वोट की शर्मनाक राजनीति दूसरी ओर से भी हो रही है और यह चिंताजनक है। जिस तरह दिल्ली में नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन के दौरान हिंसा हुई और गलत नारे लगे उसका विरोध दूसरे दलों के किसी नेता ने नहीं किया। किंतु एक पक्ष के गलत होने का अर्थ दूसरे पक्ष का सही होना नहीं होता। वास्तव में पूरी चुनाव प्रक्रिया में मुख्य स्थान भाषण और उसमें उठाए गए मुद्दों तथा प्रयोग की गई भाषा का ही है। हर नेता को ध्यान रखना चाहिए कि चुनाव लोकतंत्र में एक सामान्य राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है। इसमें जनता से संवाद करने का सबसे ज्यादा अवसर मिलता है। इसमें अगर भाषा और विचारों की मर्यादा का पालन हो तो स्वस्थ जनमत का निर्माण होता है। एक बार आपने अपनी भाषा से जनमत को कसैला बना दिया फिर उसका दुष्परिणाम आपको भी भुगतना पड़ सकता है।



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