अब जनसंख्या नियंत्रण
अनुच्छेद 370, नागरिकता कानून, राम मंदिर के बाद अब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) की नजर जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाने की है।
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उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में संघ के कार्यक्रम में आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत ने बिना लाग-लपेट के देश में दो बच्चों के कानून की बात कही। इसे लेकर एक बार फिर देश में सियासी गरमा-गरमी बढ़ गई है। हालांकि जनसंख्या पर काबू पाने के लिए संघ ने पहली बार ऐसा विचार नहीं रखा है। पहले भी वह जनसंख्या नियंत्रण को नियंत्रित करने की वकालत कर चुकी है। पिछले साल ही रांची में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल में जनसंख्या नीति का पुनर्निधारण कर नीति को सभी पर समान रूप से लागू करने का प्रस्ताव पास किया जा चुका है। पिछले साल ही लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जनसंख्या विस्फोट को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। साफ तौर पर समझा जा सकता है कि संघ और भाजपा इस बेहद संवेदनशील मसले को लेकर कितनी संजीदा है? अगर संघ प्रमुख जनसंख्या पर नियंत्रण पाने को लेकर समान रूप से नसबंदी जैसे कार्यक्रम को लागू करने की बात कह रहे हैं तो इसके गहरे निहितार्थ हैं। देश में पिछले कुछ सालों से यह भ्रम फैलाया जाता रहा है कि मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ रही है।
जबकि वास्तविकता कुछ और तस्वीर पेश करती है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में पिछले 10 सालों में हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी बढ़ने की रफ्तार में गिरावट आई है। 2011 की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धिदर 16.7 फीसद रही जबकि 10 साल पहले हुई जनगणना में ये दर 19.92 फीसद पाई गई थी। वहीं 2011 की जनगणना के मुताबिक मुसलमानों की आबादी 29.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी जो अब गिरकर 24.6 फीसद हो गई है। हां, यह भले कहा जा सकता है कि देश में मुसलमानों की दर अब भी हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धिदर से अधिक है। वैसे भी जनसंख्या की असमानता से कई स्तर पर दुारियां देखने को मिलती हैं। संसाधन जिस हिसाब से सिकुड़ते जा रहे हैं, वैसे वक्त में जनसंख्या को नियंत्रित होना ही चाहिए। हां, सरकार को इस बारे में समझदारी के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। इसमें जागरूकता की अहम भूमिका है। जनता को समझाने और छोटे परिवार की ताकत को हर शख्स के दिलोदिमाग में डालना आसान काम नहीं है।
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