आत्महत्या दर चिंताजनक

Last Updated 20 Jan 2020 12:12:01 AM IST

आत्महत्या को लेकर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2018 के आंकड़ों का विश्लेषण हमारे सामने कई ज्वलंत प्रश्न खड़े करता है।


आत्महत्या दर चिंताजनक

अनेक अभियानों तथा आत्महत्या न करने के प्रचारों के बावजूद जिस तरह हर वर्ग के लोग आत्महत्या कर रहे हैं, वह दिल दहलाने वाला है। किसानों की आत्महत्याओं पर सबसे ज्यादा राजनीतिक तू-तू-मैं-मैं होता है, पर एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हर श्रेणी और हर उम्र के लोगों ने आत्महत्याएं की हैं। 2018 में कुल 1 लाख 34 हजार 516 लोगों की आत्महत्याओं का रिकॉर्ड एनसीआरबी के पास आया, जिसमें बेरोजगारों और स्वरोजगार से जुड़े लोगों की संख्या 26 हजार 85 थी।

इनमें बेरोजगारों की संख्या 12 हजार 936 तथा स्वरोजगार से जुड़े लोगों की 13 हजार 149 थी। यह बड़ी संख्या है। हालांकि इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि इन सबकी आत्महत्या का कारण भी रोजगार ही था। आत्महत्या करने वाले कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की संख्या 10 हजार 349 थी। 2017 की तुलना में प्रति एक लाख पर आत्महत्या की दर 0.3 प्रतिशत बढ़ना भले ज्यादा नहीं लगता हो लेकिन सारा प्रयास इसे घटाने का रहा है, जिसमें सफलता नहीं मिल रही है और इस मायने में यह दुखद है।

अगर एक वर्ष में 42 हजार 391 महिलाएं आत्महत्या कर रहीं हैं, जिनमें गृहणियों की संख्या 22 हजार 937 यानी 54.1 प्रतिशत है तो इससे परिवार में जारी तनाव का प्रमाण मिला है। वास्तव में सभी आत्महत्याओं को एक साथ मिलाएं तो फिर उनके कारणों को भी सम्मिलित तथा कुछ अलग-अलग विश्लेषण करना होगा। उदाहरण के लिए 1707 सरकारी कर्मचारियों ने आत्महत्या किया तो निजी क्षेत्रों में नौकरी करने वालों की संख्या थी 5246 यानी क्रमश: 1.3 प्रतिशत तथा 6.1 प्रतिशत। इसी तरह सार्वजनिक क्षेत्र के उप्रक्रमों से 2022 कर्मचारियों ने खुदकुशी की। इन सबने क्यों आत्महत्या की होगी?

जाहिर है, कार्यालय या परिवार के अंदर के तनाव के कारण या फिर कुछ अन्य सामाजिक समस्याएं। 10 हजार 159 छात्रों द्वारा अपनी जान ले लेने का मतलब है कि हमने भारत के इतने भविष्य को खो दिया। वस्तुत: आत्महत्याओं से जुड़े मामलों के कारणों का विश्लेषण कर उनको दूर करने के लिए स्थानीय, प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर काम करने की आवश्यकता है।



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