केजरीवाल की गारंटी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की 10 गारंटी से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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यह वही सूत्र है, जिसको उन्होंने 5 वर्ष पूर्व 2015 के विधानसभा चुनाव में सफलतापूर्वक आजमाया था। आजमाए हुए नुस्खे को फिर से दोबारा जनता के सामने प्रस्तुत करने में कोई हर्ज नहीं है बशर्ते वोट मिलने की गारंटी होनी चाहिए। हालांकि जो वायदे वे कर रहे हैं, उन पर विश्वास करना इसलिए कठिन है क्योंकि 2015 में ऐसे ही बढ़-चढ़कर किए गए वायदों का हश्र हमने देखा है।
अगर उन वायदों की फेहरिस्त को आज सामने रखा जाए तो केजरीवाल एवं उनकी सरकार के मंत्रियों व पार्टी के नेताओं के लिए जवाब देना कठिन होगा। उदाहरण के लिए 20 डिग्री कॉलेज और 500 स्कूल खोलने की घोषणा थी। कोई नहीं कह सकता कि दिल्ली में कॉलेज तो छोड़िए एक भी स्कूल नया खुला हो। इसी तरह, बसों में नारी सुरक्षा के लिए मार्शल गाडरे की नियुक्ति की घोषणा उन्होंने की थी जैसे इस बार वे ‘मुहल्ला क्लिनिक’ में नारी सुरक्षा के लिए गार्ड नियुक्त करने की घोषणा कर रहे हैं।
केजरीवाल ऐसे नेता हैं, जिनके बारे में आप पहले से कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि वे क्या करेंगे। भ्रष्टाचार के विरु द्ध आंदोलन से उभरे हुए एक नेता का व्यवहार खुद में ही सदाचरण और आदर्श का उदाहरण होना चाहिए।
शायद केजरीवाल एवं उनके साथियों को लगता है कि सत्ता की दलीय राजनीति आदर्शों व सदाचारों से सफलतापूर्वक संचालित नहीं की जा सकती। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अभी भी आप के नेता केजरीवाल को उसी रूप में आंदोलनकारी व भ्रष्टाचार के विरु द्ध नायक के रूप में पेश करते हैं। सच्चाई यह है कि जिस जनलोकपाल को लेकर पूरा आंदोलन खड़ा हुआ था, अब उसकी चर्चा तक नहीं की जाती। केजरीवाल जो भी गारंटी दे रहे हैं, उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
यह कहना आसान है कि सभी व्यक्ति को समुचित चिकित्सा उपलब्ध होगी, 24 घंटे बिजली ही नहीं पानी भी लोगों को मिलेगा, यमुना पूरी तरह साफ हो जाएगी, कॉलेज और स्कूल खुलेंगे; लेकिन इनको पूरा करना कठिन है। राजनीति में इस तरह की मुफ्तखोरी के वायदों से बचने का सुझाव लगातार अर्थशास्त्री और विवेकशील लोग दे रहे हैं। लेकिन सत्ता के लालच में नेतागण इस बीमारी से अपने को मुक्त करने के लिए तैयार नहीं हैं।
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