विपक्ष और सीएए

Last Updated 21 Jan 2020 12:34:29 AM IST

देश में नये नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर केंद्र और गैर-भाजपा शासित राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक टकराव घनीभूत होता जा रहा है।


विपक्ष और सीएए

आजादी के बाद कई बार ऐसे अवसर आए हैं, जब केंद्र के किसी कानून को लेकर सड़क से संसद तक सवाल खड़े किए गए। लेकिन पहली बार हो रहा है कि संसद द्वारा पारित नये नागरिकता कानून के विरुद्ध केरल और पंजाब की विधासभाओं ने प्रस्ताव पारित किए हैं, और अब कांग्रेस शासित राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की विधानसभाओं ने भी प्रस्ताव पारित करने का संकेत दिया है। केरल की वाम मोर्चा सरकार ने सीएए की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि यह कानून संविधान की मूल आत्मा के विरुद्ध है अर्थात समता, धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है। हालांकि संविधान में बुनियादी ढांचे का कहीं भी उल्लेख नहीं है। लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर संविधान के प्रावधानों की समीक्षा और व्याख्या करने के दौरान बुनियादी ढांचे की अवधारणा का विकास हुआ। 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान को संशोधित करने का अधिकार है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं करता।

हालांकि शीर्ष अदालत ने संविधान के बुनियादी ढांचे की स्पष्ट व्याख्या नहीं की लेकिन विद्वान न्यायाधीशों ने लोकतंत्र, मौलिक अधिकार, संविधान की सर्वोच्चता आदि को संविधान के मूल ढांचे के रूप में स्वीकार किया। नये नागरिकता कानून के संबंध में शीर्ष अदालत क्या निर्णय देती है, यह तो 22 जनवरी को पता चलेगा लेकिन इतना स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट सिर्फ यह देखेगा कि यह कानून संविधान सम्मत है, या नहीं।

कानून का विरोध अपनी जगह पर है, लेकिन यह संघीय सूची में वर्णित विषय है तो राज्य सरकारें इसे लागू करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हैं। अगर विपक्ष इस कानून को असंवैधानिक मानता है तो जब केंद्र में उसकी सरकार बनेगी तो इसे निरस्त करने का उसे अधिकार है। आपातकाल में कांग्रेस ने 42वें संशोधन के जरिए संविधान में जो परिवर्तन किए थे, उन्हें सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी ने रद्द कर दिया था। इसलिए विपक्ष को संसद की सर्वोच्चता का भी आदर करना चाहिए।



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