फिर अग्नि त्रासदी
राजधानी दिल्ली में दो सप्ताह पूरा होते-होते फिर हुए एक अग्निकांड में नौ लोगों की जलकर हुई मौत ने दिल दहला दिया है।
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कल्पना करिए कि एक घर में नीचे से आग लगे और उसमें फंसकर दो परिवारों के ज्यादातर सदस्य जल जाएं तो क्या स्थिति होगी! दो सप्ताह पहले ही राजधानी के फिल्मिस्तान इलाके में एक फैक्टरी में भीषण अग्निकांड हुआ था। उसमें भी निर्दोष मजूदर जलकर जान गंवा बैठे थे। उस फैक्टरी को अवैध कहा गया था। वर्तमान अग्निकांड में स्वाहा घर में हालांकि परिवार रहते थे, लेकिन सबसे नीचे की मंजिल को किरायदार कपड़े के गोदाम के रूप में इस्तेमाल करता था। इसे हम अवैध कार्य नहीं कह सकते।
यहां भी बिजली मीटर के पास शॉर्ट सर्किट के कारण ही आग लगी, मगर दरवाजा बंद होने के कारण धुंआ तेजी से फैला एवं ज्यादातर लोग अंदर फंसे रहे गए। यह स्थान प्रेमनगर थानांतर्गत किराड़ी इलाके में स्थित इंदिरा एंक्लेव का है जहां अग्निशमन सेवा को पहुंचने में फिर वही तंग गलियों की समस्या आई जो फिल्मिस्तान इलाके में आई थीं। अग्निशमन केंद्र दूर होने के कारण दमकल वैसे ही देर से पहुंची थी। इन दो अग्निकांडों ने हमारे सामने कई प्रश्न खड़े किए हैं। भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए किया जाना चाहिए। दिल्ली ही नहीं, पूरे देश के महानगरों से लेकर कस्बों तक इसी तरह बिना योजना के मकान बने हुए हैं, और आज भी बन रहे हैं। न तो इन सबको ध्वस्त किया जा सकता है, और न भविष्य के निर्माण को पूरी तरह रोका जा सकता है।
ऐसे में जरूरी है कि सरकारें अपनी संबंधित एजेंसियों, विशेषज्ञों तथा नागरिक समाज के साथ बैठकर रास्ता निकालें। दिल्ली में ऐसी तंग गलियों को थोड़ा भी चौड़ा किया जा सकता हो तो वहां के लोगों को समझा-बुझाकर उन्हें किया जाए। हर मोहल्ले में बैठकें हों, जिनमें बिजली कनेक्शन को सुरक्षित रखने के तरीके बताए जाएं। शार्ट सर्किट की काट ढूंढ़ी जाए। साथ ही ऐसे भीषण अग्निकांडों के अनुभवों को देखते हुए बताया जाए कि आग लगने के बाद क्या-क्या करें और न करें। अग्निशमन विभाग भी तैयारी करे ताकि तंग गलियों के बावजूद आग लगने वाले स्थान पर दमकल सेवा त्वरित गति से पहुंच सके। आग लगने पर तदर्थ तरीकों से कदम उठाने से ऐसी त्रासदियां आगे भी घटित होती रहेंगी। इसलिए दिल्ली सरकार सबसे पहले इस दिशा में पहल करे ताकि दूसरे राज्यों को भी प्रेरणा मिल सके।
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