संजीदगी की दरकार

Last Updated 25 Dec 2019 07:17:04 AM IST

सड़क हादसों में हर साल मानव संसाधन का सर्वाधिक नुकसान होता है। लांसेंट पब्लिक हेल्थ जर्नल के ताजा आंकड़े चौंकाने वाले हैं।


संजीदगी की दरकार

रिपोर्ट के मुतबिक 2017 में तकरीबन 600 लोगों की मौत प्रतिदिन सड़क हादसों में घायल होने के उपरांत हुई। अध्ययन में यह तथ्य ज्यादा परेशान करने वाला है कि देश में जिन लोगों की मौत हुई, उनमें आधे से अधिक पैदल यात्री और मोटरसाइकिल सवार थे। यह भी गौर करने वाली बात है कि 2017 में दुर्घटनाओं में 2.2 लाख मौतों के साथ ही सड़क हादसा युवकों की समय पूर्व मौत के लिए सबसे बड़ा कारक बनकर उभरा है। पहले भी जो आंकड़े सरकार की तरफ से जारी हुए हैं, उसके अनुसार मरने वाले लोगों में अधिकांश युवा ही होते हैं।

जो न यातायात नियमों की परवाह करते हैं न किसी सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। कह सकते हैं कि आमजन में सुरक्षा को लेकर घोर अज्ञानता है या जागरूकता का अभाव है। लिहाजा यातायात नियम दुरुस्त हों साथ में उसको लेकर जागरूकता भी हो। नियमों का सख्ती से पालन हो। अध्ययन से ज्ञात होता है कि पैदल यात्री, साइकिल सवार और मोटरसाइकिल सवार की मौत ज्यादा तादाद में हो रही है। जबकि अंतरराष्ट्रीय सड़क संगठन के अनुसार दुनियाभर में वाहनों की संख्या का महज तीन फीसद भारत में है, लेकिन यहां होने वाले सड़क हादसों और इनमें जान गंवाने वालों के मामले में भारत की हिस्सेदारी 12.06 फीसद है। ऐसे आंकड़े नि:संदहे पीड़ादायक हैं।

सरकार को इसे चुनौती के रूप में लेने की दरकार है। उसे सालों पुराने नियमों और नीतियों को बदलना होगा। विदेशों की तर्ज पर अपने यहां भी यातायात के नियमों, सड़क सुरक्षा की जरूरत और जागरूकता को अमल में लाना होगा। मसलन साइकिल ट्रैक को बढ़ावा देने से न केवल दुर्घटनाओं पर रोक लगेगी, वरन पर्यावरण के लिए भी यह सुखकर होगा। इस तथ्य पर भी गौर करना होगा कि गंभीर रूप से घायलों को जो भी रकम सरकार (पांच लाख रुपये) मुआवजे के तौर पर देती है, उसके चलते सरकार को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इसके चलते देश के सकल घरेलू उत्पाद को तीन फीसद का नुकसान होता है। इस नाते तीव्र शहरीकरण और आर्थिक वृद्धि से तारतम्य बनाते हुए बुनियादी ढांचे और यातायात नियमों के अनुपालन पर संजीदगी से विचार करने की महती आवश्यकता है।



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