बर्बर वारदात
हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या ने फिर एक बार पूरे देश को हिला दिया है।
बर्बर वारदात |
देश के एक महत्त्वपूर्ण मेट्रो शहर में यदि रात के साढ़े नौ बजे के बीच चार लोग किसी पढ़ी-लिखी प्रोफेशनल लड़की के साथ ऐसा करने का दुस्साहस कर सकते हैं तो आम शहरों और कस्बों में इससे बुरी दशा होगी। चारों आरोपितों ने योजनापूर्वक बलात्कार, हत्या एवं जलाने की घटना को अंजाम दिया। उसने लड़की को टॉल प्लाजा पर अपनी गाड़ी लगाकर जाते देखा था, उसका टायर पंचर कर उसके लौटने का इंतजार कर रहे थे। चारों उन्हें पंचर बनवाने में मदद का आश्वासन देकर साथ ले गए थे।
कल कोई लड़की संकट में कैसे किसी पुरु ष समूह से सहायता मांगेगी? प्रश्न है कि आखिर ऐसे अपराधियों को पुलिस का भय क्यों नहीं होता? क्या बलात्कार और हत्या करने के बाद शव को बुरी तरह जलाकर पुल से नीचे फेंकने तक किसी की नजर नहीं पड़ी? कोई पुलिस वाहन नहीं गुजरा? है न आश्चर्य की बात! 2012 में निर्भया कांड के बाद पूरा कानून बदला, पुलिस की भूमिका तय की गई लेकिन हालात देखिए, मृतका की छोटी बहन जब पुलिस के पास जाती है तो कहा जाता है कि आप दूसरे थाने जाओ। वहां भी उसकी शिकायत लिखने और कार्रवाई में देरी होती है।
पूरा पुलिस महकमा यह समझने को तैयार ही नहीं था कि एक लड़की का फोन बात करते-करते स्विच ऑफ हो गया तथा वह समय पर घर नहीं लौटी तो अनहोनी हो सकती है। यह ऐसे मामलों में दूसरे किस्म की त्रासदी है जो प्राय: देखी जाती है। कुछ दिनों पहले बिहार के राजगीर में एक नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद बलात्कारियों ने वीडियो तक बनाकर वायरल कर दिया था। लेकिन जब लड़की थाने पहुंची तो वहां प्रभारी ने उसी पर प्रश्न दागना शुरू कर दिया। वहां भी लोगों को सड़क पर उतरना पड़ा।
पुलिस की ऐसी शर्मनाक भूमिका का अंत कब होगा? ऐसे ज्यादातर बर्बर अपराधों के साथ कानून-व्यवस्था की एजेंसियों की विफलता सामने आती है। हो सकता है पुलिस समय पर सक्रिय हो जाती तो हैदराबाद की दुर्भाग्यशाली लड़की को दरिंदों के चंगुल से छुड़ा लिया जाता। जाहिर है, पुलिस को कानून के अनुरूप संवेदनशील एवं त्वरित कार्रवाई की मानसिकता पैदा करने के लिए काफी कुछ करने की आवश्यकता है। इसमें नागरिक समाज की भूमिका की भी अनदेखी नहीं की जा सकती।
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