संकट गहराया
सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के हाल के आंकड़े साफ करते हैं कि चुनौतियां गहरा गई हैं। जुलाई-सितम्बर 2019 तिमाही जीडीपी में 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है।
संकट गहराया |
तमाम वस्तुओं और सेवाओं की मांग में कमी आ रही है। अप्रैल-सितम्बर 2019 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 1 प्रतिशत का सिकुड़ाव हुआ है। अप्रैल-सितम्बर 2018 में यहां 6.9 प्रतिशत का विकास देखा गया था। मैन्युफेक्चरिंग वह सेक्टर है, जहां कार, बाइक, हैंडसेट तमाम आइटम बनाये जाते हैं।
इसका करीब आधा हिस्सा तो ऑटोमोबाइल सेक्टर ही है, जहां संकट लंबे वक्त से है। तमाम उद्योग मांग के संकट से जूझ रहे हैं। मांग का संकट क्रय शक्ति से जुड़ा हुआ है। खासकर छोटे कारोबारी इस समय खुद को बहुत कमजोर व समस्याग्रस्त महसूस कर रहे हैं। वह एक तरह से आर्थिक व्यवस्था से बाहर पाते हैं खुद को। लिहाजा यह समय उनकी समस्याओं पर गंभीरता से विचार का समय है। वह इस नई व्यवस्था में कारोबार कैसे कर पाएं; इस पर गंभीर विमर्श होना चाहिए बल्कि गंभीर एक्शन भी होना चाहिए।
मनरेगा का बजट बढ़ाकर गांवों में क्रय शक्ति को मजबूत बनाया जाना चाहिए। मनरेगा का बजट 2019-20 के लिए 60,000 करोड़ रुपये का है, इसमें फौरन 25-30 हजार करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को राहत दी जानी चाहिए। मांग तो तमाम उद्योगों में तब ही आयेगी, जब अर्थव्यवस्था में मजबूत क्रयशक्ति होगी। निवेश बढ़े, तो रोजगार बढ़े, रोजगार बढ़े तो क्रय शक्ति और खासकर गुणवत्ता वाली क्रय शक्ति का विस्तार हो। अभी तमाम बातों के बावजूद बहुत नीतिगत अनिश्चितता है। आंध्र प्रदेश में नई सरकार के आने के बाद पुरानी कई परियोजनाएं रद्द कर दी गयी हैं।
महाराष्ट्र में नई सरकार के आने के बाद मेट्रो व बुलेट परियोजना पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। तो ऐसे में तमाम दलों को नीतिगत सातत्य सुनिश्चित करना होगा। देशी-विदेशी निवेशकों को आश्वस्त करना होगा कि नीतियां एकदम नहीं बदल जायेंगी। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कहती हैं कि सितम्बर में कॉरपोरेट टैक्स में करीब 10 फीसद की कटौती के बाद 12 ग्लोबल कंपनियों ने भारत में आने में रु चि दिखायी है। पर सवाल वही है, क्या नीतिगत अनिश्चितता के माहौल में देशी-विदेशी निवेशक यहां आसित महसूस करते हैं?
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