मूल स्वरूप में एसपीजी
जब से सोनिया गांधी, राहुल गांधी एवं प्रियंका वाड्रा की विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) वापस कर जेड प्लस सुरक्षा दी गई है तभी से यह विवाद का विषय बना हुआ है।
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अब चूंकि लोक सभा में इससे संबंधित अधिनियम संशोधन विधेयक पारित हो गया और उसके पहले दोनों ओर से खूब तर्क-वितर्क हुए तो देश के सामने सच आ गया है। वर्तमान बदलाव के बाद एसपीजी अपने पुराने स्वरूप में आ गया है। इसमें प्रधानमंत्री एवं उनके साथ निवास करने वाले उनके निकट परिवार के सदस्यों को ही एसपीजी सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। वास्तव में इसे इस रूप में नहीं देखा जाना चाहिए कि किसी एक परिवार को ध्यान में रखते हुए संशोधन किया गया है। कांग्रेस के प्रथम परिवार के सदस्यों को जेड प्लस सीआरपीएफ कवर, एएसएल और एम्बुलेंस के साथ सुरक्षा दी गई है। गृहमंत्रालय हर उस व्यक्ति के सुरक्षा खतरे की सतत समीक्षा करता रहता है जिसे सुरक्षा कवच मिला हुआ है। उसके आधार पर उसकी सुरक्षा बढ़ाई, घटाई या हटाई जाती है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। ये तीनों तो पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार हैं। इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा बदली गई। पूर्व प्रधानमंत्रियों, चंद्रशेखर, पीवी नरसिंह राव और इंद्र कुमार गुजराल की एसपीजी सुरक्षा वापस ली गई थी।
उस समय कोई हंगामा नहीं हुआ। समस्या यह है कि जान पर खतरे को देखते हुए दिया गया सुरक्षा कवच धीरे-धीरे स्टेटस सिंबल बन गया। छोटा से छोटा नेता ही नहीं सामाजिक एवं धार्मिंक क्षेत्र में काम करने वाले भी चाहते हैं कि उनके साथ सुरक्षा कारवां चले। इसमें राजनीतिक पक्षपात भी होता है। सत्ता की कृपा से ऐसे लोगों को सुरक्षा मिल जाती है जिनकी जान को कोई जोखिम नहीं। यह मानसिकता का प्रश्न है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि एसपीजी सुरक्षा के पीछे मूल विचार क्या था? उसी के कार्यकाल में बने अधिनियम के तहत एसपीजी अस्तित्व में आया। उसे उसके मूल स्वरूप में ही रहने दिया जाए यही उचित होगा। शेष लोगों के लिए जान के खतरे के क्रम के अनुसार एसपीजी के अलावे जो सुरक्षा व्यवस्थाएं हैं वो प्रदान किया जाना चाहिए। सोनिया, राहुल एवं प्रियंका की सुरक्षा जिम्मेवारी सरकार पर छोड़ना चाहिए। जेड प्लस भी सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा व्यवस्था है। कोई सरकार इस परिवार के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा नहीं कर सकती यह विश्वास रखना चाहिए।
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