सुस्ती कहो या मंदी
केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्य सभा में कहा कि विकास दर कम हुई है पर अर्थव्यवस्था की स्थिति को मंदी नहीं कहा जा सकता।
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परिभाषा के हिसाब से अगर अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद में लगातार दो तिमाहियों में गिरावट आए, तो इस स्थिति को मंदी की स्थिति कहा जा सकता है। जो देखने को मिल रहा है, वह विकास दर में गिरावट है, यानी अर्थव्यवस्था सिकुड़ नहीं रही है, विकसित ही हो रही है; हां पहले के मुकाबले कम तेज गति से। अप्रैल-जून तिमाही 2019 में अर्थव्यवस्था की विकास दर 5 प्रतिशत रही थी। यूं यह अलग मसला है कि गत आठ नवम्बर 2019 को समाप्त सप्ताह में यह 1.71 अरब डॉलर बढ़कर 447.81 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।
यानी विदेशी मुद्राकोष में ऐसी मजबूती पहले कभी नहीं देखी गई। मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक सेंसेक्स 28 नवम्बर को 41130 बिंदुओं का रिकॉर्ड ऊंचाई पर बंद हुआ। यानी कुल मिलाकर केंद्रीय वित्तमंत्री के पास ऐसे आंकड़े हैं, जिनसे वो साबित कर सकती हैं कि अर्थव्यवस्था में थोड़ी बहुत सुस्ती है, पर मंदी जैसी कोई बात नहीं है। विपक्ष लगातार सरकार को इस बात पर घेर रहा है, रोजगार पैदा नहीं हो रहे हैं। निवेश की रफ्तार नहीं बढ़ रही है। विकास दर लगातार गिर रही है।
केंद्रीय वित्त मंत्री ने संसद में जो कहा, वह निश्चय ही तथ्यों पर आधारित था, पर तथ्य कई किस्म के होते हैं। तथ्य यह भी हैं कि बिस्कुट से लेकर कार कंपनियों को अपने उत्पादों को बेचने में समस्याएं आ रही हैं। यानी अर्थव्यवस्था में कहीं-न-कहीं मांग की समस्या है। मांग की समस्या है यानी क्रय क्षमता का निर्माण नहीं हो रहा है, या पर्याप्त निर्माण नहीं हो रहा है। ऐसी सूरत में आदमी हाथ रोककर ही खर्च करता है। देखने में यह भी आया है कि मनरेगा में नौजवानों की तादाद बढ़ रही है।
आंकड़े बताते हैं 2018-19 के दौरान 18 से 30 साल के आयुवर्ग के करीब 70 लाख से ज्यादा लोग मनरेगा से जुड़े। इसके पहले के साल यानी 2017-18 के दौरान यह संख्या 58 लाख थी। यानी 2018-19 में ज्यादा युवा लोग मनरेगा से जुड़े। यह अच्छे संकेत नहीं हैं, मनरेगा तो अंतिम उपाय है। यानी ग्रामीण इलाकों में हाल अच्छे नहीं रोजगार के। बेहतर यह है कि अर्थव्यवस्था पर सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने आर्थिक ज्ञान से इस सरकार को भी लाभान्वित करें और सबके पक्ष भी खुलकर सामने आएंगे।
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