सेहत-शिक्षा पर खर्च से रुकेगी आबादी

Last Updated 27 Oct 2019 01:03:58 AM IST

पिछले सप्ताह असम सरकार ने देश का ध्यान बढ़ती आबादी की ओर खींच लिया। राज्य सरकार ने फैसला किया कि दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिताओं को 2021 के बाद सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी।


सेहत-शिक्षा पर खर्च से रुकेगी आबादी

इसके साथ ही 2021  के बाद तीसरा बच्चा पैदा करने वालों पर अनुशासन की कार्रवाई की जाएगी। असम सरकार ने अपने काम को ‘‘क्रांतिकारी’’ बताया है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि असम सरकार का यह फैसला आबादी नियंतण्रसे ज्यादा राजनीति से प्रेरित है क्योंकि असम में आबादी बढ़ने की दर उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों से कम है।

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सवाल उठता है कि क्या ऐसे कदमों से आबादी बढ़ने की रफ्तार कम करने में मदद मिलती है? इसका उत्तर नोबेल पुरस्कार अमत्र्य सेन ने दिया है। आबादी नियंतण्रके कठोर उपायों के बारे में उनका कहना है कि ये उन लोगों के खिलाफ है, जो पहले से कठिनाई में हैं। उनकी राय में यह खासकर औरतों के खिलाफ है। उन्होंने बताया कि आबादी नियंतण्रके ऐेसे उपायों से शिशु मृत्यु दर घटने के बदले बढ़ती है और बालिका शिशु मृत्यु दर में ज्यादा बढ़ोतरी होती है।

सरकार हस्तक्षेप करे : क्या इसका अर्थ यह है कि आबादी नियंतण्रके लिए सरकार कोई नीति नहीं बनाए और न कोई हस्तक्षेप करे? इसके उलट सरकार को अवश्य हस्तक्षेप करना चाहिए और इसे ठोस ढंग से करना चाहिए। लेकिन उसकी नीति उन सिद्धांतों के आधार पर नहीं होना चाहिए जो अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं और जो बीमारी के बदले बीमार को निशाना बनाते हैं। समस्या आबादी का बढ़ना है, वे लोग नहीं जो आबादी बढ़ाते हैं। आबादी बढ़ाने वाला वर्ग खुद इस समस्या का शिकार है।

प्रभावी कार्यक्रम : प्रो. सेन की कुछ और प्रस्थापनाओं का हमें ध्यान रखना चाहिए क्योंकि बिना गहरी समझ वाली नीति के आबादी नियंतण्रके प्रभावी कार्यक्रम नहीं बनाए जा सकते। एक तो बड़ी आबादी भुखमरी तथा अकाल नहीं लाती और न ही ये विकास में बाधा पहुंचाती है। सेन ने पर्यावरण-परिवर्तन में भी दुनिया की बढ़ती आबादी के योगदान को नकारा है। उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिंंग तथा ओजोन के स्तर में कमी के लिए बड़ी आबादी वाले देशों के मुकाबले कम आबादी वाले यूरोप तथा अमेरिका के विकसित देश ज्यादा जिम्मेदार हैं।

आबादी बढ़ने के मूल कारण : क्या सेन के विचारों से यह नतीजा निकाला जाए कि घनी आबादी वाले इलाकों में रहने वाले अपनी आबादी पर कोई लगाम न लगाएं और इसे बढ़ने दें? यह नतीजा एकदम गलत होगा। असल में, ये अर्थशास्त्री आबादी बढ़ने के मूल कारणों में जाने तथा उन्हें दूर करने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका कहना है कि आबादी बढ़ने का खमियाजा उन लोगों को भुगतना होता है, जिनकी आबादी बढ़ती है। वह ज्यादा आबादी के कारण नागरिक सुविधाओं में आने वाली कमी जैसी दिक्कतों को वास्तविक समस्या मानते हैं। सबसे ज्यादा शोषण औरतों का होता है, जो बच्चा जनने तथ पालने के काम में अपनी जिंदगी गंवा देती हैं।
आबादी बढ़ने का मूल कारण गरीबी, अशिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है और इसे समझे बिना हम आबादी पर नियंतण्रनहीं पा सकते हैं। इसे समझने के लिए हमें अपने देश के विभिन्न राज्यों में आबादी के आंकड़ों पर गौर करना चाहिए।

उत्तर-दक्षिण में अंतर : आबादी के लिहाज से देश दो हिस्सों में बंटा दिखाई देता है। एक ओर, दक्षिण के राज्य हैं, जहां आबादी के बढ़ने की दर काफी कम है और दूसरी ओर उत्तर के राज्य हैं, जिनकी आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है। पिछली जनगणना के मुताबिक इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में अबादी बढ़ने की दर 20 प्रतिशत से ज्यादा है। बिहार के मामले में यह 25 प्रतिशत है। 

दक्षिण से सीखना होगा :  अध्ययनों से साफ जाहिर होता है कि दक्षिण के राज्यों में आबादी के काबू में आने की वजह आबादी  नियंतण्रके कठोर उपाय नहीं हैं, बल्कि स्वास्थ्य तथा शिक्षा की व्यवस्था में बेहतरी है। दो आंकड़ों पर नजर डालने से बात स्पष्ट हो जाती है। 1951 की जनगणना के अनुसार, तमिलनाडु की आबादी बिहार से थोड़ी ज्यादा थी। साठ साल बाद यानी 2011 की जनगणना में बिहार की आबादी डेढ़ गुना ज्यादा है। ऐसा ही मध्य प्रदेश के मामले में है। मध्य प्रदेश की आबादी केरल के मुकाबले 37 प्रतिशत ज्यादा थी, यह 217 प्रतिशत ज्यादा हो गई। दक्षिण के राज्यों में यह चमत्कार मानव सूचकांकों के बेहतर होने के कारण हुआ। वहां शिशु मृत्यु दर और प्रसूति मृत्यु दर, कुपोषण पर काबू पाया जा सका है। इन राज्यों ने अपनी गरीबी पर काबू पाया है।

उप्र-बिहार का कर्त्तव्य : इसका अर्थ यह है कि बढ़ती आबादी को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे राज्यों को अपनी स्वास्थ्य तथा शिक्षा योजनाओं पर खुले दिल से खर्च करना चाहिए। उन्हें इस बात की ओर ध्यान देना जरूरी है कि बढ़ी आबादी ने उन्हें अपने राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर रखा है। संसद की सीटों की संख्या बढ़ने से रोक दी गई है।

उपाय जो हैं : आज कम आबादी वाले राज्यों के लोगों का प्रतिनिधित्व, ज्यादा आबादी वाले राज्यों के प्रतिनिधित्व से ज्यादा है। आबादी के अनुपात में ज्यादा आबादी वाले राज्यों के प्रतिनिधि कम हैं। यही नहीं, उनकी आबादी का बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों के विकास तथा सेवा के लिए अपना श्रम दे रहा है। इससे बचने का एक ही उपाय है कि वह अपनी आबादी कम करे। देश के स्तर पर भी हमें ऐसे ही उपाय करने होंगे। हमारी आबादी 2024 में चीन से ज्यादा हो जाएगी और इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है।

अनिल सिन्हा


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