अभिजीत-मोदी मुलाकात

Last Updated 24 Oct 2019 12:12:54 AM IST

नाबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात से उन लोगों को निराशा हुई है, जो उनसे किसी तरह सरकार की आलोचना करवाना चाहते थे।


अभिजीत-मोदी मुलाकात

वैसे तो मीडिया को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कह दिया था कि मैं एक प्रोफेशनल हूं और जो भी मुझसे सुझाव मांगेगा दूंगा। उन्होंने स्वयं को कम्युनिस्ट कहने या भाजपा विरोधी होने को साफ नकार दिया था। प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद उनका यह कहना कि भारत के बारे में उनके सोचने का तरीका अनूठा है, वे अनोखा विजन रखते हैं जो काफी महत्त्वपूर्ण है। हालांकि यह सभंव नहीं है कि अभिजीत जैसा अर्थशास्त्री सरकार की सारी नीतियों से सहमत हों।

वे कॉरपोरेट सहित संपन्न वर्ग पर ज्यादा कर लगाने के पक्षधर हैं, जबकि सरकार ने आर्थिक सुस्ती के बाद बनाए गए माहौल के दबाव में बजट घोषणा तक में बदलाव कर करों में कमी कर दी है। अभिजीत के आर्थिक विचार में इससे विकास वृद्धि नहीं होगी। बावजूद वे मुस्कराते हुए बिल्कुल सरल तरीके से मीडिया को यह बताते रहे कि प्रधानमंत्री ने हमको आगाह कर दिया है कि आपलोग हमसे सरकार के खिलाफ बोलवाना चाहते हैं। अभिजीत के भारत आने के पहले एक वातावरण बनाया गया था कि वह आर्थिक स्थिति को लेकर सरकार को निशाने पर लेंगे। अगर वे ऐसा करते तो सरकार पर विपक्ष एवं अन्य विरोधियों का हमला और तीखा होता। उन्होंने इसकी जगह सरकार की आयुष्मान जैसी योजना की प्रशंसा कर दी।

पहले उन्होंने जनधन योजना की भी प्रशंसा करते हुए इसे और उपयोगी बनाने की बात की थी। वास्तव में उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से सरकार की हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत से नीचे लाने का जो सुझाव दिया वह उन लोगों को नागवार गुजरा होगा, जो उनसे वामपंथी सोच के अनुसार सरकारी संस्थाओं में किसी तरह के विनिवेश के विरोधी हैं। वस्तुत: अभिजीत मुखर्जी एक अर्थशास्त्री हैं और उनका मुख्य कार्य गरीबी कम करने पर है।

इसके लिए उन्होंने कुछ संस्थाओं के साथ मिलकर प्रयोग किए हैं। उनकी सरलता, सहजता देखकर लगता नहीं कि राजनीति को लेकर वह किसी एक विचारधारा की सीमाओं में बंधने और दूसरे की आलोचना करने वाले व्यक्तित्व हो सकते हैं। वे जब तक भारत में हैं, हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था से संबंधित जानकारी हासिल करें। कुछ सकारात्मक सुझाव लें। इसकी जगह उनको आंतरिक राजनीति का मोहरा बनाने की सोच गलत है।



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