सच बोल रहे मलिक

Last Updated 24 Oct 2019 12:10:29 AM IST

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मानना है कि सूबे में मुख्यधारा की पार्टियां, धार्मिक उपदेशकों और हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठनों के नेताओं ने घाटी के युवाओं को आतंकवाद और मौत की ओर धकेला है।


सच बोल रहे मलिक

राज्यपाल का पद संवैधानिक है, लिहाजा इस पद पर बैठे व्यक्ति से आमतौर पर यह अपेक्षा रहती है कि वह अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को अच्छी तरह समझते हुए उनके अनुरूप ही आचरण करेगा।

इसलिए कटरा शहर में श्री माता वैष्णो देवी विविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने घाटी की मुख्यधारा की पार्टी और हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठन के स्वयंभू नेताओं के बारे में जो कुछ कहा है, सिद्धांतत: उस पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है। लेकिन आजाद भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में जब भी किसी राज्य में संवैधानिक संकट पैदा हुआ, उस समय ज्यादातर राज्यपालों की भूमिका तटस्थ नहीं रही है। उन्होंने सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक और दलीय हितों की सुरक्षा के लिए ही अधिकतर काम किया है।

हालांकि इसके लिए राज्यपालों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी कम जिम्मेदार नहीं है। यह माना जाता है कि राज्यपाल राज्यों में राष्ट्रपति के अभिकर्ता के रूप में काम करते हैं और प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं। जाहिर है कि कोई राज्यपाल का अपने पद कर तब तक बना रह सकता है, जब तक उसे प्रधानमंत्री का विश्वास हासिल है। इसलिए यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि राज्यपाल प्रधानमंत्री की इच्छा के विपरीत कार्य करेगा। सच्चाई तो यही है कि कोई राज्यपाल केंद्र सरकार की इच्छा के विपरीत अपने पद पर बना नहीं रह सकता है।

केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपालों की भूमिका को तटस्थ बनाने के लिए सरकारिया आयोग का भी गठन किया गया, लेकिन इसका कुछ विशेष असर नहीं हुआ। जाहिर है राज्यपालों की भूमिकाओं की इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में यह कैसे मान लिया जाए कि मलिक का नजरिया दलगत राजनीति से ऊपर हो सकता है। मगर यह भी सच है कि जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा के राजनीतिक दल, हुर्रियत और मजहबी संगठन युवाओं को अपने राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर राज्यपाल मलिक ऐसा मानते हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वह इस प्रवृत्ति को रोकने का भी प्रयास करेंगे।



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