सुनवाई की समय सीमा
अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के मामले में दो महत्त्वपूर्ण दो टिप्पणियां आई हैं।
सुनवाई की समय सीमा |
पहला, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई का है, जिन्होंने पक्षकारों से कहा है कि हमें मिलकर इस सुनवाई को 18 अक्टूबर तक पूरी करने का प्रयास करना चाहिए जिससे कि फैसला लिखने के लिए चार हफ्ते का समय मिल सके। इस तरह शीर्ष अदालत ने अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी करने की समय सीमा तय कर दी है और 15 नवम्बर से पहले इस संवेदनशील मसले पर फैसला आ सकता है। स्मरणीय है कि मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोगोई 17 नवम्बर को रिटायर हो रहे हैं, और 15 नवम्बर उनका आखिरी कार्यदिवस है। दूसरा महत्त्वपूर्ण बयान देश के गृह मंत्री अमित शाह का है, जिन्होंने कहा है कि राम जन्मभूमि-मस्जिद मसले पर सर्वोच्च न्यायालय का जो भी फैसला आएगा उसे सबको मानना होगा अर्थात फैसले से एक पक्ष सहमत हो सकता है, और दूसरा असहमत, लेकिन इसे मानने के लिए सभी बाध्य होंगे। सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी से इस बात के आसार बढ़ गए हैं कि अयोध्या स्थित रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद की 2.77 एकड़ विवादित भूमि के स्वामित्व के लिए दो पक्षकारों के बीच करीब 70 सालों से चली आ रही कानूनी लड़ाई अब पटाक्षेप के करीब है।
इस विवाद ने वर्षो से अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। समाज में विघटक परिस्थितियां पैदा की हैं। देश के दो मुख्य समुदायों के बीच विद्वेष को बढ़ावा दिया है। वर्षो बाद इस विवाद के निर्णय की घड़ी आ गई है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की टिप्पणी न्यायपालिका की चिंता के साथ-साथ उनकी तत्परता को भी प्रदर्शित करती है। वह मानते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से यह मामला अपनी अंतिम परिणति तक पहुंचे। हालांकि यह आशंका व्यक्त की जाती रही है कि जिस पक्ष के मनमाफिक फैसला नहीं आएगा वह देश में उपद्रव और अशांति पैदा कर सकता है। विशेषकर ऐसे छोटे-छोटे समूह जो सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं और वे इस मसले को आस्था का सवाल मानते हैं। अगर फैसला इनके मनमाफिक नहीं आता है, तो ऐसे समूहों से निपटना गृह मंत्री के लिए परीक्षा और चुनौती होगी। ऐसे समूहों को यही सलाह दी जा सकती है कि न्यायालय के फैसले को मानकर उस विवाद को समाप्त करने में सहयोग करना चाहिए जो वर्षो से सबको मथता रहा है।
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