प्रोत्साहन की कटौती

Last Updated 23 Sep 2019 04:03:11 AM IST

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा करों में कमी करने, कर्ज की दर घटाने और बैंकों की तरफ से पर्याप्त कर्ज बांटने की व्यवस्था करने का मुख्य उद्देश्य हो सकता है तो यही कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़े, भारत एक आकषर्क निवेश स्थल के तौर पर स्थापित हो।


प्रोत्साहन की कटौती

वास्तव में घरेलू कंपनियों के लिए कॉरपोरेट कर को 30 प्रतिशत से घटकार 22 प्रतिशत तक लाना ऐतिहासिक है। इतनी बड़ी कटौती इसके पहले कभी नहीं हुई थी।

यही नहीं मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश करने वाली नई घरेलू कंपनियों को मात्र 15 प्रतिशत की दर से ही कॉरपोरेट कर देना होगा। ऐसी घरेलू कंपनियों को मिनिमम ऑल्टरनेट टैक्स (मैट) भरने की जरूरत भी नहीं होगी। हां, यह सही है कि घटी हुई इस दर का लाभ लेने वाली कंपनियों को कर छूट के रूप में दूसरे प्रोत्साहनों का लाभ नहीं मिलेगा। सारे फैसले अध्यादेश के द्वारा लागू हो गए हैं। हालांकि इन छूटों की वजह से चालू वित्त वर्ष के दौरान केंद्र सरकार के खजाने पर 1.45 लाख करोड़ रु पये का भारी बोझ पड़ेगा। इसकी भरपाई कैसे होगी अभी यह कहना जरा कठिन है।

आम धारणा यही है कि अगर अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी तो कर राजस्व का अपने आप विस्तार होगा। सीतारमण की इस घोषणा का असर शेयर बाजारों के लंबी छलांग के रूप में सामने आया है। विदेशी निवेश की संभावना भी बढ़ी है और इसका असर डॉलर के मुकाबले भारतीय रु पये की मजबूती है। सरकार एफपीआई पर बढ़ा अधिभार पहले ही कम करने का ऐलान कर चुकी है। शेयर बचने पर टीजीटी यानी ट्रांजैक्शन गेन्स टैक्स खत्म किया जा चुका है। कैपिटल गेन करों में भी कटौती की जा चुकी है। इसके साथ जीएसटी की दरों में कमी या कुछ मामले में तो शून्य कर दिया है।

इन सारे फैसलों को एक साथ मिला लें तो निष्कर्ष यही आएगा कि सरकार ने उद्योगों, कारोबारियों एवं हर किस्म के निवेशकों के लिए अब बिल्कुल अनुकूल वित्तीय, प्रशासनिक माहौल निर्मिंत कर दिया है। कोई सरकार एक महीने के अंदर इतनी तेजी से इतनी बड़ी घोषणाएं नहीं कर सकतीं। इन सबमें भविष्य के लिए जोखिम है। हम उम्मीद करेंगे इन कदमों को अपेक्षित असर हो, हमारी अर्थव्यवस्था गति पकड़े। किंतु निवेशकों और कारोबारियों को भी विचार करना होगा कि सरकार के साथ देश के प्रति उनकी भी जिम्मेवारी है।



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