शाह-मदनी मुलाकात
पिछले दिनों जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द के साथ कई मुस्लिम संगठनों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर देश, खासकर मुस्लिम समुदाय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की।
शाह-मदनी मुलाकात |
मुलाकात के बाद जमीयत की ओर से जारी बयान में संगठन के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि कुछ मुद्दों पर सरकार के साथ उनकी असहमति हो सकती है, लेकिन राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर जमीयत हमेशा सरकार के साथ खड़ी रहेगी। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद कई लोगों में यह जानने की दिलचस्पी थी कि भारत का मुस्लिम समुदाय इसे किस रूप में देख रहा है। हालांकि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाना कोई हिन्दू-मुस्लिम प्रसंग नहीं है, इसे केन्द्र-राज्य के संबंधों के रूप में देखा जा सकता है। पर भारत के मुसलमानों को धर्म के आधार पर गुमराह करने या उकसाने की कोशिश करना पाकिस्तान की आदत में शुमार हो चुका है। ऐसे में राष्ट्रीय आकांक्षाओं के अनुरूप जमीयत का यह बयान पाकिस्तान के मुंह पर एक तमाचा है कि उसके लिए राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। यह भारतीय मुसलमानों की उस धर्मनिरपेक्ष अवधारणा की अभिव्यक्ति है, जिसका अंतर्निहित संदेश यही है कि भारत के आंतरिक मामलों में इस्लामी पाकिस्तान की दाल नहीं गलने वाली है।
सच तो यह है कि इस मुलाकात के पहले ही जमीयत ने एक प्रस्ताव पास कर कहा था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और सभी कश्मीरी हमारे हमवतन हैं। कोई भी अलगाववादी आंदोलन न केवल देश, बल्कि कश्मीर के लिए भी हानिकारक है। शाह ने भी इस प्रतिनिधिमंडल से यही कहा कि अनुच्छेद 370 से कश्मीर के लोगों को नुकसान हो रहा था। यह सुखद है कि इस मसले पर देश में एक राय उभरकर सामने आ रही है। लेकिन साथ में यह जरूरी था कि केंद्र सरकार मुस्लिम समुदाय की चिंताओं का निराकरण करे, ताकि उनके मन में देश भर में एनआरसी, यूएपीए जैसे मसलों को लेकर कोई शंका-संदेह न रहे। मदनी के अनुसार शाह ने आश्वासन दिया कि मुसलमानों को किसी भी तरह से घबराने की जरूरत नहीं है। शाह ने स्पष्ट किया कि घुसपैठियों के लिए देश में कोई जगह नहीं होगी। नए भारत के निर्माण के लिए आवश्यक है कि यहां धर्मनिरपेक्षता को प्रतिष्ठित किया जाए, जहां सभी धर्मो के प्रति समान भाव हो।
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