एक विधिवेत्ता का जाना
अपनी मृत्यु की ‘प्रतीक्षा’ कर रहे प्रख्यात विधिवेत्ता राम जेठमलानी अंतत: परलोक प्रस्थान कर गए।
![]() प्रख्यात विधिवेत्ता राम जेठमलानी |
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण पिछले कुछ वर्षो से उन्होंने वकालत से दूरी बना ली थी। यह उनकी नैतिकता थी, जिसके तहत उन्होंने स्वास्थ्य खराब होने पर नये मामले अपने हाथ में लेने से इनकार कर दिया था। 18 साल की उम्र में वकालत शुरू करने वाले 96 वर्षीय जेठमलानी अंग्रेजी राज में ही कोर्ट की चौखट पर अपनी दस्तक दे चुके थे।
कानून के इस सुदीर्घ अनुभव ने उन्हें एक चलता-फिरता विकोष बना दिया था। तथ्यों पर उनकी गहरी पकड़ थी, तो कानून की बारीक समझ भी थी। यही कारण था कि कोर्ट में प्रतिपक्षी वकील उनसे भय खाते थे, तो जज भी कभी-कभी विस्मित हो जाते थे। पर उनके व्यक्तित्व की यही एकमात्र खासियत नहीं थी, जिसके कारण उन्हें याद किया जाए। वस्तुत:, जेठमलानी धारा के खिलाफ चलने की हिम्मत रखते थे। उन्हें इस बात की परवाह नहीं रहती थी कि उनके बारे में कौन क्या कह रहा है? कई अलोकप्रिय मामले उन्होंने अपने हाथ में लिए और कई जीते भी।
चाहे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के हत्यारों का मामला हो या अफजल गुरु का, ऐसे अनेक मामलों में बचाव पक्ष की तरफ से वे कोर्ट में पेश हुए। एक वकील के लिए इससे अधिक प्रसन्नता की क्या बात हो सकती है, अगर वह किसी निर्दोष को बचा ले। इंदिरा गांधी हत्याकांड में बलबीर सिंह को बचाकर उन्होंने यही साबित किया था। दरअसल, जिन मामलों के बारे में पहले ही मान लिया जाता था कि उनमें अब कुछ नहीं होने वाला है, जेठमलानी द्वारा हाथ में लेते ही उनमें जान आ जाती थी। आरक्षण के मसले पर पिछड़ा वर्ग के पक्ष में भी उन्होंने खूब लड़ाई लड़ी थी।
जेठमलानी का बेबाकी और विद्रोही स्वभाव कोर्ट के गलियारे तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि संसद में भी प्रकट हुआ। काला धन के खिलाफ उनकी मुहिम को कौन भुला सकता है। भाजपा की मदद से वे राजनीति में आए, लेकिन उसके खिलाफ भी आवाज उठाने में देर नहीं लगाते थे। वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने वालों में वे शामिल रहे। हालांकि उनकी राजनीति में स्थिरता नहीं थी, लेकिन आपातकाल का दंश झेल चुके जेठमलानी मूलत: कांग्रेस विरोधी थे। भारतीय समाज व राजनीति में जेठमलानी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, उनकी कमी अवश्य खलेगी।
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