अलविदा जेटली

Last Updated 26 Aug 2019 06:43:41 AM IST

भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व वित्त एवं रक्षा मंत्री अरुण जेटली का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।


भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व वित्त एवं रक्षा मंत्री अरुण जेटली

जेटली की उम्र 66 वर्ष थी, लेकिन इसी उम्र में वे पांच दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे। यह दिखाता है कि उनका राजनीतिक प्रशिक्षण कितना समृद्ध रहा होगा। दिल्ली विविद्यालय में अपने अध्ययन के दौरान ही वे छात्र राजनीति में प्रवेश कर गए थे।

इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और उनका राजनीतिक करियर निरंतर चढ़ता गया। वाजपेयी सरकार में वे मंत्री बनाए गए। मोदी सरकार चलाने में उनकी अहम भूमिका रही। चाहे जीएसटी लागू करना हो या दिवालिया कानून, मोदी सरकार के दौरान ऐसे कई कदम उठाए गए, जिसमें जेटली की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता।

नोटबंदी और राफेल प्रकरण के दौरान वे मोदी सरकार के संकटमोचक बन कर आए। ऐसा नहीं था कि उनसे असहमति जताने वाले नहीं थे, नवउदारवाद के विरोधी उनके आलोचक रहे हैं। लेकिन उनकी मौत पर जिस तरह से राजनीति और समाज के विभिन्न हिस्सों से उन्हें श्रद्धांजलि मिली, वह यह प्रदर्शित करने के लिए काफी है कि उनकी स्वीकार्यता व्यापक पैमाने पर थी। भाजपा में वे एक ऐसे राजनेता थे, जिन्हें समाज के मनोविज्ञान की बेहतर समझ थी, जो उनकी राजनीतिक सूझबूझ को द्विगुणित करती थी।

यही कारण था कि 2014 के लोक सभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में पेश करने में उनमें कोई हिचक नहीं थी। लोक सभा चुनाव वे भले ही नहीं जीत पाए थे, लेकिन भाजपा के पक्ष में जनमत तैयार करने में वे पार्टी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शक रहे। जब कभी वैचारिक प्रश्न आया, वे पार्टी की विचारधारा के प्रति दृढ़ता से खड़े रहे। अयोध्या विवाद हो या अनुच्छेद 370, पार्टी की सोच को तीक्ष्ण बृद्धि के जेटली ने प्रखरता से पेश किया। विरोधी भी उनकी वक्तृत्व क्षमता से चमत्कृत हो जाते थे।

दूसरों को साधने की उनकी कला ने गठबंधन के दौर में भाजपा को मजबूती प्रदान की। यही वह पहलू था, जो उन्हें अपने समकालीन नेताओं से विशिष्ट बनाती थी। यही कारण है कि जेटली के जाने से भाजपा में जो रिक्तता आई है, उसे तत्काल भर पाना मुश्किल है। चूंकि भाजपा केंद्र की सत्ता में है, इसलिए जेटली का निधन न केवल पार्टी और सरकार, बल्कि देश के लिए भी नुकसानदेह है। सरकार उनके अमूल्य सुझावों की कमी महसूस करेगी, यह सत्ताधारी दल के नेताओं के बयान से जाहिर है।



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