लौटाए गए प्रतिनिधिमंडल

Last Updated 26 Aug 2019 06:41:07 AM IST

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के करीब 20 दिनों बाद वहां के हालात का जायजा लेने गए श्रीनगर पहुंचे कांग्रेस सांसद राहुल गांधी समेत 11 विपक्षी नेताओं को हवाईअड्डे से लौटा देना कई सवाल खड़े करता है।


लौटाए गए प्रतिनिधिमंडल

जब से अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया है, तब से वहां की जमीनी स्थिति जानने की बेचैनी हर किसी को है। इसके उलट सरकार के अपने तर्क हैं।

वह चाहती है कि अभी वहां सख्ती की जरूरत है, इस नाते किसी को भी कश्मीर को लेकर सियासत करने का कोई भी स्पेस नहीं दिया जाए। यही वजह है कि सरकार किसी भी विपक्षी नेताओं को वहां जाने से रोक रही है। इससे पहले भी माकपा नेता सीताराम येचुरी और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को श्रीनगर हवाईअड्डे से ही वापस दिल्ली भेज दिया गया। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष; सभी को कश्मीर की संवेदनशीलता को संजीदगी से लेना होगा।

सिर्फ देश ही नहीं विश्व भर के मुल्कों को कश्मीर की वर्तमान स्थिति के बारे में जानने-समझने की गहरी जिज्ञासा है। सिर्फ बयानबाजी या वहां का दौरा करने से हालात सुधरने के बजाय बिगड़ने का खतरा ज्यादा है, सो नेताओं को इसका भान होना निहायत जरूरी है। उन्हें हल्की बातों या टिप्पणियों से विलग रहना होगा। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल को भी गंभीरता के लबादे में रहने की आदत डालनी होगी।

तिल का ताड़ कैसे बनता है, इसका उन्हें बखूबी ज्ञान होगा। वहीं केंद्र सरकार को भी इस बात के लिए अच्छी-खासी मेहनत की आवश्यकता है कि वहां के बारे में खुद आगे बढ़कर स्थिति स्पष्ट करे। वहां चल रहे या अगले कुछ दिनों में विकास की नीतियों को किस तरह अमलीजामा पहनाया जाएगा, इसकी घोषणा करने से भी कानाफूसी के बादल छंटेगे।

दूसरी ओर, अगर विपक्षी प्रतिनिधिमंडल वहां गया तो सरकार को उन्हें कुछ इलाकों में जाने की अनुमति देनी चाहिए थी। रोक लगाने से इसके गलत अर्थ लगाए जाएंगे। और यह सरकार के लिए परेशानी का सबब होगी। नि:संदेह नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर साहस का काम किया है। उनका बहुत कुछ दांव पर है। लिहाजा सरकार को विपक्ष के दबाव में आकर बना खेल बिगाड़ने से बच निकलने के उपाय तलाशने होंगे। साथ ही अपने साहसिक निर्णय को सर्वस्वीकार्य और ईमानदार साबित करने के लिए दृढ़ता के साथ  बढ़ना होगा।



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