सोनिया का सहारा

Last Updated 12 Aug 2019 12:19:00 AM IST

चौंकाने वाले फैसले के तहत एक बार फिर सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाल ली है।


सोनिया का सहारा

हालांकि उन्होंने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में यह जिम्मेदारी संभाली है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि यह जल्द खत्म होने वाली है। जब तक पूर्णकालिक अध्यक्ष का चयन नहीं हो जाता, सोनिया गांधी ही पार्टी का कामकाज संभालेंगी। यह फैसला इसलिए अप्रत्याशित लगा कि किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि सोनिया गांधी पार्टी का दायित्व संभालेंगी।

जब उन्होंने 2017 में पार्टी अध्यक्ष पद से अपने को अलग किया था, तब यही माना जा रहा था कि वह खुद को कांग्रेस के नेतृत्व से दूर रखेंगी। कांग्रेस कार्यसमिति का यह फैसला उस स्थिति में आया है, जब राहुल गांधी चाहते थे कि गांधी परिवार से कोई पार्टी अध्यक्ष न बने। हालांकि प्रियंका गांधी का नाम पार्टी अध्यक्ष के लिए चल रहा था, लेकिन सोनिया गांधी के नाम ने सचमुच चौंका दिया। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि वह कौन-सी परिस्थिति थी, जिसने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी का कार्यभार संभालने के लिए मजबूर कर दिया?

सवाल यह है कि जिन कारणों से राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस ने उस मौके को गंवा दिया? यह सबको विदित है कि राहुल गांधी ने लोक सभा चुनाव में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। राहुल गांधी ने जो मानदंड स्थापित किया था, अपेक्षा थी कि पार्टी के जिम्मेदार नेता उसका अनुसरण करते। लेकिन वैसा पूरी तरह नहीं हो सका। और तो और, कांग्रेस कार्यसमिति उनका विकल्प भी नहीं खोज पाई, और इस तरह सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाने के फैसले ने भाजपा के ‘परिवारवाद’ के आरोप को और पुख्ता कर दिया। यह पार्टी संगठन की लाचारगी को ही प्रकट करती है।

शायद इन्हीं कारणों से सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान दोबारा संभाली है, ताकि पार्टी मौजूदा स्थिति से उबर सके। समय की मांग है कि पार्टी का नये सिरे से गठन हो और वह राष्ट्र व समाज के समक्ष व्याप्त चुनौतियों से निपटने में अपनी प्रभावी भूमिका तय कर सके। लोकतांत्रिक राजनीति में प्रभावी विपक्ष अनिवार्य है, लेकिन चुनाव में पराजय के बाद से कांग्रेस अपने आपको संभाल नहींपाई है। कह सकते हैं कि वह काफी हतोत्साहित हो चुकी है। संसद का बजट सत्र इस बात की पुष्टि करता है कि कांग्रेस कई मसलों पर समुचित दृष्टिकोण तक नहीं अपना सकी।



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