इमरान का कबूलनामा
सालों से जिस पाकिस्तान पर आतंकवाद की नर्सरी होने का आरोप लगता रहा है, आखिरकार वहां के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस सच्चाई को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया है।
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अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उन्होंने यह स्वीकार किया कि पाकिस्तान में तीस-चालीस हजार आतंकी अब भी सक्रिय हैं और पाकिस्तान के कुछ आतंकवादियों ने कश्मीर में लड़ाई लड़ी है।
अब तक पाकिस्तान की सरकारें जिस सच्चाई को छिपाने का प्रयास करती रही थीं, उसे वहीं के प्रधानमंत्री द्वारा सार्वजनिक करने का मकसद क्या है? दरअसल, पाकिस्तान अभी एक तरफ आर्थिक संकट से जूझ रहा है, तो दूसरी ओर उसके खिलाफ आतंक के वित्त पोषण के मामले में वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) द्वारा और कार्रवाई का खतरा मंडरा रहा है।
अगर आतंकियों को पनाह देने की सच्चाई छिपा नहीं सकते, तो ऐसे में इमरान सरकार के लिए यही उपयुक्त था कि उसे स्वीकार कर और उसके खिलाफ अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दिखाकर पाकिस्तान की छवि को बदलें, ताकि अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति अर्जित कर कुछ फायदा उठाया जा सके। इसीलिए ‘बिना दाढ़ी वाला तालिबान खान’ के नाम से मशहूर इमरान की कई बातों पर सहज विश्वास करना कठिन है।
अगर इमरान यह कहना चाहते हैं कि उनकी सरकार आने पर ही पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई, तो यह सत्य नहीं है। इमरान के सत्तासीन होने से पहले से ही पाक स्थित आतंकियों पर कार्रवाई हो रही थी, पर यह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे उन संगठनों के प्रति हो रही थी, जिनसे पाकिस्तानी हितों को चोट पहुंच रही थी। भारत के खिलाफ सक्रिय लश्कर-ए-तोयबा जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ पाक सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही थी। आज भी यह प्रवृत्ति जारी है। इस चयनित कार्रवाई को ही इमरान अगर ‘कार्रवाई’ मानते हैं, तो इसे दुनिया को गुमराह करने वाली रणनीति का हिस्सा ही माना जाएगा।
यह इमरान की ईमानदार स्वीकारोक्ति नहीं है। पुलवामा हमले को स्थानीय आतंकवादियों की करतूत बताना उनकी इसी मानसिकता को दिखाता है। जब खुद इमरान स्वीकार करते हैं कि कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकी सक्रिय हैं, तो उन्हें इधर-उधर की बात करने के बजाय अपनी जमीन पर सक्रिय भारत विरोधी आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
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