कर्नाटक में उम्मीद

Last Updated 25 Jul 2019 02:22:11 AM IST

कर्नाटक विधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव का परिणाम निश्चित था। कांग्रेस एवं जद (एस) के 15 विधायकों के इस्तीफे, दो निर्दलीयों की समर्थन वापसी और एक विधायक के बीमारी के बहाने भाग जाने के बाद एचडी कुमारस्वामी की सरकार की मौत हो चुकी थी।


कर्नाटक में उम्मीद

दोनों पार्टियों के रणनीतिकार जबरन सरकार बचाने की असफल कोशिश करते रहे और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका से उनको इसमें मदद मिली। अच्छा होता यह स्थिति पैदा होते ही कुमारस्वामी इस्तीफा दे देते।

नहीं भी दिया तो विधानसभा अध्यक्ष को सदन में तुरंत फैसला करा देना चाहिए था। एक तो विश्वासमत प्रस्ताव लाने के निर्णय में काफी विलंब किया गया। जब भाजपा ने कहा कि हम अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे तब सरकार ने अध्यक्ष के पास विश्वासमत का प्रस्ताव दिया। वस्तुत: इस पूरे प्रकरण में भारतीय लोकतंत्र और राजनीति के लिए कई प्रश्न खड़े हुए हैं।

कुछ प्रश्न तो संवैधानिक हैं, जिनका उत्तर शायद सर्वोच्च न्यायालय दे। आखिर, विधायकों का इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं हुआ है, और उनको अध्यक्ष द्वारा ह्विप का उल्लंघन करने व दल बदल कानून के दायरे में लाने की संभावना बलवती हो रही है। जिन लोगों ने इस्तीफा दे दिया है, उन पर दल बदल लागू कैसे हो सकता है, समझ से परे है। यह राजनीतिक प्रतिशोध का कदम होगा, जिससे वे सारे विधायक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, इसलिए मंत्री भी नहीं बन सकेंगे। किंतु मामला सर्वोच्च न्यायालय में है।

ऐसा होता है तो न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना ही होगा। इससे भी बड़ा प्रश्न है कि क्या अध्यक्ष को इस तरह की भूमिका निभानी चाहिए? राजनीति और लोकतंत्र की दृष्टि से यह पहलू महत्त्वपूर्ण है कि एक दूसरे की जानी दुश्मन पार्टयिां और नेता सत्ता के लिए हाथ मिला लें तो उसका परिणाम कभी सकारात्मक नहीं होता। न सरकार सामान्य तरीके से काम कर पाती है, न स्थिर रहती है।

उम्मीद करनी चाहिए कि जो सरकार बनेगी, वह स्थिर होगी। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी और येदियुरप्पा ने बहुमत न जुट पाने के कारण इस्तीफा दे दिया था तो उनके अंदर टीस होगी। पर यदि कांग्रेस एवं जद (एस) के अंदर गहरा असंतोष नहीं होता तो भाजपा कुछ नहीं कर सकती थी। कांग्रेस और जद-(एस) दोनों को विचार करना चाहिए कि उनके मंत्री तक ने क्यों इस्तीफा दिया? इनके मनाने के सारे प्रयास क्यों विफल रहे? जब आपके घर के अंदर मतभेद होता है, तभी विरोधी उसका लाभ उठा पाते हैं।



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