खत्म हुई सुरक्षा

Last Updated 25 Jul 2019 02:19:35 AM IST

केंद्र सरकार का कई नेताओं की सुरक्षा वापस लेने और कइयों की कम करने का फैसला वाकई प्रशंसनीय कदम है।


खत्म हुई सुरक्षा

130 से ज्यादा मामलों की समीक्षा के बाद विभिन्न श्रेणियों में नेताओं और अफसरों की सुरक्षा को कम कर सरकार ने अपने वादे को भी पूरा किया। यह सर्वविदित है कि देश में सुरक्षा की श्रेणी खतरे के स्तर के साथ एक स्टेटस सिंबल भी माना जाता है।

कई नेता तो महज अपनी हनक दिखाने के लिए भारी सुरक्षा अमले के साथ चलते हैं। बिना यह सोचे-विचारे कि ऐसा करना न्यायसंगत नहीं है। कई सालों से इस बात पर बहस भी होती रही है कि नेताओं को भारी-भरकम सुरक्षा की क्या दरकार? आखिर क्यों जनता के पैसों को नेताओं की सुरक्षा पर लुटाया जाए।

यहां तक कि दो साल पहले एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी अपनी सख्त टिप्पणी में यह कहा था कि नेताओं की सुरक्षा पर हो रहे खर्च पर रोक लगनी चाहिए। यह कहीं से भी उचित और तर्कसंगत नहीं है कि टैक्स देने वाली जनता का पैसा नेताओं की सुरक्षा व्यवस्था पर लगे। वैसे भी राजनीतिक दल अपने नेताओं की सुरक्षा का खर्च उठाने में पूरी तरह सक्षम हैं। ऐसे में सरकार को उनकी सुरक्षा का खर्च उठाने की जरूरत कतई नहीं है। सरकार को यह भी देखने की जरूरत है कि जनता को कितनी सुरक्षा मिलती है?

क्या इस बारे में कारगर कदम उठाने की जरूरत नहीं है। अगर इन्हीं मामले में देखें या पिछले आंकड़ों का अध्ययन करें तो पाते हैं कि राजनीतिज्ञों को पुलिस सुरक्षा देते वक्त विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया। वैसे भी प्रत्येक व्यक्ति के साथ बराबरी का व्यवहार होना चाहिए। केंद्र सरकार ने इस फैसले में कुछ नेताओं की सुरक्षा को लेकर राज्य सरकारों को भी विचार करने को कहा है।

देखना है राज्य सरकारें इसे कितना युक्तिसंगत बनाती हैं? निश्चित तौर पर किसी नेता, सांसद या विधायक की सुरक्षा का मसला बेहद महत्त्वपूर्ण होता है। यह कई बार देशहित से भी जुड़ा होता है, क्योंकि वीआईपी लोगों को सुरक्षित रखा जाना चाहिए और इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार का फैसला इस मायने में बेहद अहम है क्योंकि वीआईपी संस्कृति को खत्म करने की दिशा में किया गया यह प्रयास सही दिशा में जाता दिख रहा है। ऐसी कोशिशों की सराहना होनी चाहिए।



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