आतंकवाद पर प्रहार
गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम में लोक सभा द्वारा किया गया संशोधन काफी महत्त्वपूर्ण है और पिछले अनुभवों को देखते हुए आवश्यक भी था।
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आतंकवाद से अगर प्रभावी और सफल लड़ाई लड़नी है तो कानून के सारे खांचों को भरना आवश्यक है। अनुभव के अनुसार इसमें कई कमियां नजर आई। मसलन, इसमें आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित करने का प्रावधान तो है, पर आतंकवादियों को नहीं। आप एक संगठन को प्रतिबंधित करते हैं तो वह दूसरे नाम से संगठन बना लेता है। दूसरे को प्रतिबंधित करते हैं तो तीसरा बना लेता है। इसमें आतंकवादी कई बार कानूनी शिकंजे से बच जाते हैं। इस विधेयक में आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने का प्रावधान है। गृहमंत्री अमित शाह के उदाहरण से स्पष्ट है कि यह कितना जरूरी था। इंडियन मुजाहिदीन का आतंकवादी यासीन भटकल भारत में आतंकवाद फैलाता रहा, वह पकड़ा गया और आराम से छूट भी गया। कारण, वह आतंकवादी घोषित होकर प्रतिबंधित नहीं था। यदि वह प्रतिबंधित होता तो अनेक आतंकवादी घटनाओं से देश बच जाता। नये प्रावधानों के अनुसार आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने वाले, आतंकवादियों को तैयारी में मदद करने वाले, उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करने वाले और साहित्य एवं वैचारिक प्रचार के जरिए आतंकवाद के सिद्धांत का प्रचार करने वालों को आतंकवादी घोषित किया जाएगा। यह विश्व स्तर के नियमों के अनुकूल है। यह सच है कि केवल बंदूक चलाने वाला ही आतंकवादी नहीं होता।
उसकी किसी तरह से मदद या समर्थन करने वाले भी आतंकवादी ही हैं। हां, इसका दुरु पयोग नहीं हो, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। कई बार निर्दोष भी आशंका में दायरे में आकर उत्पीड़न के शिकार होते हैं। हालांकि इसमें दुरु पयोग रोकने के पूर्वोपाय किए गए हैं। गृहमंत्री ने आस्त भी किया और कुछ उदाहरण भी दिए। आतंकवाद के विरु द्ध लड़ाई एवं हर तरह के कदमों में पूरे देश को साथ खड़ा होना चाहिए। किंतु लोक सभा में ऐसा नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस ने पहले आशंकाएं उठाई और अंत में स्थायी समिति और संयुक्त प्रवर समिति के पास भेजने की मांग कर बहिर्गमन कर दिया। हालांकि सरकार को कई विपक्षी दलों का साथ मिला। बावजूद आतंकवाद के खिलाफ सख्ती और शून्य सहिष्णुता की नीति में अंतर नहीं होना चाहिए। इस विधेयक का पारित होना इसका सबूत है।
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