प्रशंसनीय कार्य
जिन लोगों ने बाढ़ के पानी में फंसे महालक्ष्मी एक्सप्रेस और उसके यात्रियों के बचाव का अभियान देना होगा वे जिंदगी भर इसे नहीं भूल पाएंगे।
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इसी से कल्पना की जा सकती है जो यात्री उसमें फंसे रहे होंगे उनकी क्या दशा हुई होगी? मुंबई से कोल्हापुर के रवाना हई महालक्ष्मी एक्सप्रेस ठाणे जिले में बदलापुर-वांगनी स्टेशनों के बीच फंस गई। उल्हास नदी का जलप्लावन रेल के रास्ते की बाधा बन गया। करीब 1050 यात्रियों के लिए यह जीवन के सबसे बड़े संकट की घड़ी थी।
अंदर पीने का पानी नहीं, खाने के लिए भी कुछ नहीं और नदी का उफान..। इसमें एक खतरा बाढ़ में पटरियों के नीचे की मिट्टी, पत्थर सबके बह जाने के कारण रेल के कुछ डिब्बों के धंसने, पानी में गिर जाने का होता है। खैर, नौसेना, रेलवे पुलिस बल और राष्ट्रीय आपदा बल (एनडीआरएफ) ने समय रहते राहत अभियान शुरू कर दिया और सभी फंसे यात्रियों को निकाल लिया।
इनमें महाराष्ट्र पुलिस के साथ रेलवे के अन्य विभाग एवं प्रदेश प्रशासन भी जुटा था। बावजूद यात्रियों को बाहर निकालने में 17 घंटे का समय लगा। रेल इस तरह फंस जाए तो पहली प्राथमिकता यात्रियों को बचाने की ही होती है। इसमें गर्भवती महिलाएं थीं, बच्चे थे, वृद्ध थे, बीमार थे..। क्रम से इनको निकालने की कोशिश होती है। इसमें एक महीने की एक बच्ची को भी बचाया गया।
ऐसे मामलों में फंसे लोगों का धैर्य और आत्मानुशासन बहुत मायने रखता है। जैसे ही घोषणा हुई कि जो जहां हैं वहीं रहें, बचाव कार्य आरंभ हो गया है..कुछ लोग उसी हालत में रहते हुए भी परेशान लोगों को समझाते और ढांढस बंधाते रहे। विवेकशील लोगों को ऐसे संकट में आगे आकर इसी तरह की भूमिका निभानी चाहिए। इससे भगदड़ मचने की संभावना कम हो जाती है।
हाल के समय में आपदा प्रबंधन में भारत ने स्वयं को काफी सशक्त किया है। कई अवसरों पर हमने देखा है एक साथ सारे संबंधित विभाग अपने को झोंक देते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री स्वयं इस पर नजर रखे हुए थे। इस आपदा प्रबंधन में भी विभागों के बीच अच्छा समन्वय दिखा। हमारा मानना है कि इसे एक सीख के रूप लिया जाए और चूंकि अनेक भागों में बाढ़ ने विकराल रूप लिया हुआ है इसलिए दूसरी जगह के लिए भी संबंधित विभागों को तैयार रहना चाहिए।
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