कश्मीर में सुरक्षा बल
कश्मीर में सुरक्षा बल के जवान पहले से ही काफी संख्या में तैनात हैं, इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की 100 कंपनियों यानी 10,000 जवानों को वहां भेजना उसकी नाजुक हालत की ओर इशारा करता है।
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सरकार की तरफ से यही कहा जा रहा है कि इन जवानों की तैनाती कश्मीर घाटी में आतंकवाद निरोधक अभियानों एवं कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए किया जा रहा है, लेकिन वहां अनुच्छेद 35ए एवं 370 को हटाए जाने की चर्चा जोरों पर है।
आम से लेकर खास लोग कह रहे हैं कि केंद्र के इस फैसले ने लोगों में भय पैदा कर दिया है। जहां आए दिन सुरक्षा बलों पर हमले होते रहते हैं, वहां इनकी तैनाती से भय क्यों? क्या वहां बेलगाम हिंसा जारी रहनी चाहिए? कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की कितनी जरूरत है, यह केंद्र के आकलन पर निर्भर करता है, लेकिन यह ऐसा मसला नहीं है कि इससे शांति पसंद लोगों को चिंतित होने की जरूरत है। चिंता उन्हें होगी, जो हिंसा में लिप्त होंगे। यह फैसला उस वक्त किया गया है, जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल कश्मीर का दौरा करके लौटे हैं।
अगर अफगानिस्तान समस्या को लेकर चल रही वार्ता एवं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिका यात्रा से इसे जोड़ कर देखें, तो यह एक भिन्न आयाम की ओर संकेत करता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इससे कश्मीर में आतंकी वारदात बढ़ जाने का अंदेशा है? हां, यह सवाल विचारणीय जरूर है कि क्या बल के आधार पर कश्मीर समस्या का समाधान किया सकता है? बेशक कश्मीर समस्या का राजनीतिक पहलू है। कोई इसे केंद्र-राज्य संबंध के रूप में देख सकता है, लेकिन कश्मीर घाटी की स्थिति देश के अन्य हिस्सों से ही नहीं, जम्मू और लद्दाख से भी अलग है। ऐसे में यह तर्क राजनीति से प्रेरित प्रतीत होता है। दरअसल, कश्मीर समस्या की प्रकृति बदलती जा रही है।
कश्मीर घाटी में जेहादी ताकतों के बढ़ते असर के कारण परिदृश्य बदल चुका है। इसलिए अगर बल के आधार पर आतंकी तत्वों को नियंत्रण में ला भी दिया जाए, तो भी वहां सामान्य स्थिति बहाल करना आसान नहीं होगा। कश्मीर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है, जिसे पाकिस्तान द्वारा निर्मिंत किया गया है। यह आतंकवाद नहीं, छद्म युद्ध है। इसलिए कश्मीर समस्या की प्रकृति को समझे बिना इसका समाधान संभव नहीं है। कश्मीर समस्या के समाधान के लिए वैचारिक के साथ-साथ सैनिक ताकत का इस्तेमाल करना ही पड़ेगा।
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