मंदी की आहट
एक किताब के लोकार्पण समारोह में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मौजूदा समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था नये और तनावपूर्ण व्यापार वार्ताओं के अनिश्चित दौर में जा रही है।
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वैश्विक क्या घरेलू अर्थव्यवस्था के आंकड़े उत्साहित करने वाले नहीं हैं? जून, 2019 में जून, 2018 के मुकाबले सबसे बड़ी कार कंपनी मारु ति की बिक्री 16.68 प्रतिशत गिरी। दुपहिया वाहन कंपनी हीरो मोटोकोर्प की बिक्री 12.45 प्रतिशत गिरी। ये निजी कंपनियों के आंकड़े हैं। इन पर वैसा विवाद नहीं हो सकता है कि मंदी की आहटें सुनाई दे रही हैं, या नहीं। मूडीज रेटिंग एजेंसी ने 29 जुलाई, 2019 को जारी रिपोर्ट में बताया कि अर्थव्यवस्था को आर्थिक सुस्ती और नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में छाये दबाव से खतरे हैं। कुल मिलाकर सुस्ती साफ दिख रही है अर्थव्यवस्था में। सरकार को इस पर चिंतित होना चाहिए। विकास दर सात प्रतिशत है, या चार प्रतिशत यह बात तो नागरिकों को महसूस होनी चाहिए। आर्थिक विकास होता है तो होते हुए दिखता है। सात प्रतिशत की विकास दर घटती हुई कार और दुपहिया वाहनों की बिक्री के साथ नहीं होती। इसलिए अर्थव्यवस्था पर नये सिरे से चिंतन जरूरी है। राजनीतिक बहसबाजी के लिए हर पक्ष अपने लिए आंकड़े जुटा सकता है पर मसले सिर्फ आंकड़ों के नहीं हैं।
बीमारी की सही पहचान और उसके सटीक उपचार के हैं। सरकार मर्ज को ही मानने से इनकार करेगी तो इलाज की तो बात ही बेमानी होगी। सरकार को इस विषय पर चिंतन करना चाहिए कि कैसे आम आदमी की जेब चार पैसे अतिरिक्त आएं तो वह तमाम आइटमों की खरीद-फरोख्त के लिए बाजार में निकले। समस्या है कि तमाम आइटमों और सेवाओं की मांग मजबूत नहीं है। ऐसा तब होता है कि जब ग्राहक जेब की रकम को खर्च ना करना चाहता। भावी संकट का सामना करने के लिए उसे बचाकर रखना चाहता है। ऑटोमोबाइल उद्योग कुछ कर राहतों की मांग कर रहा है। उसका कहना है कि मांग में सुस्ती से उद्योग के करीब दस लाख रोजगार खतरे में हैं। हो सकता है कि ऑटो उद्योग राहत पाने के लिए कुछ अतिश्योक्ति का भी सहारा ले रहा हो पर इनकार नहीं किया जा सकता कि समग्र अर्थव्यवस्था सुस्ती से जूझ रही है। इसका जल्दी से निराकरण हो। जरूरी है कि ऐसे प्रयास सरकार करती दिखे।
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