प्रधानमंत्री का गुस्सा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह हिंसा करने वाले नेताओं के खिलाफ तीखा तेवर अपनाया है, उसके निष्कर्ष गहरे हैं।
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इसका पहला और मूल निष्कर्ष यह है कि वह पार्टी नेताओं और उनके परिजनों से सभ्य और गरिमामय आचरण की अपेक्षा रखते हैं। उनके वक्तव्य में एक चेतावनी भी है कि ऐसा न करने वालों के खिलाफ पार्टी कार्रवाई करेगी। उन्होंने कहा कि चाहे वह किसी का बेटा हो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। इसका सामान्य अर्थ यही निकाला गया कि प्रधानमंत्री इंदौर में विधायक आकाश विजयवर्गीय द्वारा निगम अधिकारी को बल्ले से पीटने से नाराज हैं। किसी नेता को हिंसा का वरण नहीं करना चाहिए।
हिंसा करते ही आप नेता-कार्यकर्ता की जगह अपराधी बन जाते हैं। किसी गलत कार्य का विरोध करना तथा उसे न होने देने के लिए प्राणपण से लड़ना किसी नेता के संकल्पवान चरित्र का द्योतक होता है, लेकिन जैसे ही आपने हाथ उठा लिया आपका चरित्र बदल जाता है। किंतु इसका यह भी मतलब नहीं होना चाहिए कि अगर विकट परिस्थितियों में किसी ने हाथ उठा दिया तो उसे बिल्कुल खलनायक मान लिया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा के सर्वेसर्वा हैं। उनका एक-एक वक्तव्य पार्टी के लिए आदेश हो जाता है।
इंदौर में एक पुराने घर को तोड़ने को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद में विधायक का कूदना बिल्कुल स्वाभाविक था। जनता द्वारा मदद मांगने पर वहां पहुंचना भी युवा विधायक की संवेदशीलता को दर्शाता है। वह अगर निगम के अधिकारियों-कर्मचारियों, बिल्डर माफिया एवं पुलिस की मिलीभगत से लड़ता है तो जनता के लिए। अगर उसके सामने घर से महिलाओं को खिंचा जा रहा था तो उसे रोकने की कोशिश लाजमी थी। एक भी महिला पुलिस वहां नहीं थी। पीड़ित महिलाओं ने अवश्य पत्रकारों के समक्ष अपने बयान दिए हैं तथा थाना में शिकायत दर्ज कराई है।
इस तरह पूरे घटनाक्रम को समग्रता में देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री पूरे घटनाक्रम के दूसरे पहलू को भी देखें। विधायक ने बल्ले से निगमकर्मी की पिटाई की तो उसके खिलाफ मामला दर्ज हुआ। उसे जेल भी जाना पड़ा। हिंसा से दूर रहने की हिदायत और उसके लिए कड़े तेवर अपनाना तो ठीक है, किंतु प्रधानमंत्री के इस तरह के वक्तव्य के बाद कल कोई दूसरा जन प्रतिनिधि किसी निस्सहाय के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अहिंसक तरीके से भी खड़ा होने से बचेगा तो यह स्थिति पूरी राजनीति के लिए अच्छी नहीं होगी।
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