तो कातिल कौन?
उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित कृष्णानंद राय हत्याकांड में आरोपित सभी लोगों का बरी होना कई सवाल खड़े करता है।
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इस मामले में माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी व अन्य छह आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में विशेष सीबीआई अदालत ने बुधवार को बरी कर दिया। 2005 में दिनदहाड़े इस वारदात को अंजाम दिया गया था और कुल सात लोगों पर एके 47 से ताबड़तोड़ फायरिंग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था। आरोपितों को बरी करते हुए अदालत की टिप्पणी इस मायने में खास है कि उसने गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा न देने और इसके चलते उनके मुकर जाने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।
विशेष अदालत का साफ कहना है कि यह एक बड़ा मामला था, जिसमें सात कत्ल हुए, 70 से ज्यादा गवाह थे, फिर भी सब-के-सब आरोपित बरी हो गए। खास बात यह कि तमाम उपायों के बावजूद देश की सर्वोच्च एजेंसी के हाथों नाकामी ही हाथ लगी। मसलन; केस की जांच उत्तर प्रदेश पुलिस से सीबीआई को सौंपी गई, केस की सुनवाई गाजीपुर से दिल्ली स्थानांतरित की गई, मगर सारी कवायदें धरी-की-धरी रह गई। किसी पर अपराध साबित नहीं हो सका। जबकि सीबीआई ने जांच के दौरान आरोपितों के खिलाफ तमाम पुख्ता सबूत होने का दावा किया था।
यह मामला सिर्फ आरोपितों के बरी हो जाने भर का नहीं है। इसने न केवल गवाहों की सुरक्षा से जुड़े मसले को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है बल्कि जांच एजेंसी की सिरमौर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच शैली पर भी कई सवाल उठाए हैं। क्योंकि मामले के दो गवाह तो सीबीआई की जांच के दौरान ही मार दिए गए थे। यह मामला सीधे-सीधे सीबीआई की साख पर सवाल खड़े करता है। हां, गवाहों के मुकरने में डर, धमकी, लालच आदि बड़ी वजह होती हैं, मगर तंत्र के इकबाल का भी कुछ मतलब होता है।
उसे तो इतने अहम केस के मामले में सतर्कता, पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ जांच करनी चाहिए थी। अब आगे अभियोजन पक्ष का इस मसले पर क्या रुख रखता है, इसका इंतजार करना होगा। मगर सभी आरोपितों के बरी हो जाने के बाद एक बार फिर इलाके में वर्चस्व की जंग तेज होने की आशंका है। जहां पीड़ित गुट फैसले के झटके से उबरकर बदला लेने के लिए सोचेगा वहीं बचाव पक्ष नये सिरे से इलाके में अपनी दावेदारी करेगा। किंतु सबसे बड़ा सवाल यही कि गवाहों को सुरक्षा देने का अब कौन सा प्रयास हो। साथ ही उन सातों का कातिल कौन है?
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