शुभ संकेत

Last Updated 24 Jun 2019 06:47:09 AM IST

कश्मीर घाटी में पिछले साल अगस्त से हालात बेहतर हुए हैं और हुर्रियत कांफ्रेस सरकार के साथ बातचीत करना चाहती है।


शुभ संकेत

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के इस बयान से घाटी में शांति बहाली के शुरुआती कदम के तौर पर देखा जा सकता है। कश्मीर में अशांति का दौर पिछले तीन दशक से चल रहा है। कई सारे जतन करने के बावजूद वहां अमन की स्थापना नहीं हो सकी है। हर रोज खूनखराबा और मरने-मारने की वारदात आम है। यही वजह है कि देश का सबसे खूबसूरत और समृद्ध प्रदेश अब बदहाली और तंगहाली से दो-चार है। पाकिस्तान की ओर विष-वमन और आतंकवादी घटनाओं को प्रश्रय और आतंकवादियों की घुसपैठ ने राज्य के हालात को बद से बदतर बना दिया है। अब अगर कश्मीर में मौजूद अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस केंद्र सरकार से बातचीत के लिए आतुर है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। क्योंकि बातचीत के नाम से ही मुंह बिदकाने वाला संगठन अगर वार्ता की पहल कर रहा हो तो उसकी स्थिति को समझा जा सकता है। दो साल से सेना और अर्धसैनिक बलों की अगुवाई में चल रहे ‘ऑपरेशन ऑलआऊट’ ने आतंकवादियों को काफी हद तक निपटा दिया है। पत्थरबाजी की घटना पर भी काफी हद तक रोक लगी है।

खासकर स्थानीय आतंकवादियों की बड़ी मौजूदगी को सेना और सुरक्षाबलों ने ठिकाने लगाया है। इस साल अब तक 70 से ज्यादा आतंकवादी मुठभेड़ में मार गिराए गए। 2018 में कुल 250 से ज्यादा आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने मौत के मुंह में पहुंचा दिया। मगर यह समस्या का हल नहीं है। सिर्फ मरने-मारने से घाटी में शांति नहीं लाई जा सकती है। इससे इतर भी कुछ पहलकदमी की जरूरत है। मसलन; राज्य की जनता से संवाद कायम हो, लोगों तक पहुंचा जाए, युवाओं से बातचीत की जाए और कट्टरपंथियों के विरोध का सधा और सतर्क प्रयास हो। प्रधानमंत्री ने पहले भी यह बात कही थी कि मरने वाले तो अपने ही हैं। क्यों न इन्हें मुख्यधारा में लाया जाए। सरकार कहती भी रही है कि संविधान के तहत जो कुछ घाटी के लोग मांगेंगे, उन्हें मिलेगा। फिलहाल हुर्रियत की बातचीत की पहल को बेहद सावधानी, सकरात्मकता और दृढ़ता के साथ समझ-बूझ कर सधी चाल चलनी होगी। इसी में सबकी भलाई है।



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