स्वागत योग्य सुझाव

Last Updated 24 Jun 2019 06:49:27 AM IST

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने और उच्च न्यायालय में खाली पड़े न्यायाधीशों के पदों को भरने के साथ उनकी सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने का जो अनुरोध किया है उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।


स्वागत योग्य सुझाव

मुख्य न्यायाधीश ने समय के अनुरूप सुझाव दिया है और उसके लिए संवैधानिक रास्ते भी सुझाए हैं। इस समय सर्वोच्च न्यायालय में 58 हजार से ज्यादा और उच्च न्यायालयों में 43 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। प्रतिदिन नये मुकदमे आ रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश बिल्कुल सही कह रहे हैं कि न्यायाधीशों के अभाव में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कानून से संबंधित कई मामलों में संविधान पीठ गठित करना संभव नहीं हो रहा है। वास्तव में हम सब न्यायालयों में लंबित मुकदमों के अंबार की चर्चा करते हैं और उसके लिए कुछ रास्ते भी सुझाते हैं। वैसे लंबे समय बाद सर्वोच्च न्यायालय के अनुरोध पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने निर्धारित पदों पर नियुक्तियां की हैं। यानी इस समय एक भी पद रिक्त नहीं है। किंतु अब मुख्य न्यायाधीश इनकी संख्या बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। इसी तरह उनका कहना है कि अगर संविधान संशोधन कर उच्च न्यायालयों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष से 65 वर्ष कर दिया जाए तो इसका भी असर होगा। न्यायाधीशों की कमी के चलते कानून के सवाल से जुड़े अहम मामलों पर फैसला करने के लिए जरूरी संख्या में संविधान पीठें गठित नहीं की जा रही हैं।

25 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 1079 पद स्वीकृत हैं मगर इनमें 399 रिक्त पड़े हैं। जाहिर है, यदि इन पदों पर नियुक्तियां हो जाएं और मुख्य न्यायाधीश के सुझाव के अनुरूप उनकी सेवानिवृत्ति की अवधि 62 से 65 वर्ष कर दिया जाए तो मुकदमों को निपटाने में तेजी आ सकती है। आखिर जब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं तो उच्च न्यायालयों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? उम्र ज्यादा होने से उनमें परिपक्वता आती है और नवोन्मेषी विचारों के अनसार वे मुकदमों पर काम करते हैं। मुख्य न्यायाधीश के इस सुझाव को स्वीकारने में समस्या नहीं है कि 62 वर्ष पूरी करके जो न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो गए हैं, उनकी पुनर्नियुक्ति भी की जा सकती है। हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री को इन सुझावों में जितना संभव है उसे स्वीकार करने के लिए शीघ्र कदम उठाना चाहिए। इसमें उच्च न्यायालयों के लिए राज्य सरकारों के साथ बैठकें भी की जा सकतीं हैं।



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