जिद से बिगड़े हालात

Last Updated 17 Jun 2019 07:31:51 AM IST

पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के तेवर को कतई गलत नहीं कहा जा सकता। हालांकि अस्पतालों में अनेक डॉक्टरों की लापरवाही मरीजों के रिश्तेदारों के अंदर क्षोभ पैदा करता है और वे हिंसक हो जाते हैं।


जिद से बिगड़े हालात

तो डॉक्टरों को भी अपने व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता है। बावजूद जो कुछ कोलकाता में हुआ वह भयानक था। एक बुजुर्ग व्यक्ति की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। उसके बाद  एक समुदाय के लोग ट्रकों पर लदकर आए और वहां आतंक का राज कायम कर लिया। डॉक्टरों की इतनी बेरहमी से पिटाई की गई कि एक के मस्तिष्क की हड्डी तक टूट गई। जो पुलिस अस्पताल में ड्यूटी पर थी, वह तो मूकदर्शक बनी ही रही, अस्पताल की ओर से हमले की सूचना दिए जाने पर भी पुलिस बल वहां नहीं पहुंची। यही नहीं सीसीटीवी में कई हमलावरों के चेहरे दिखने के बावजूद उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई भी नहीं। इससे डॉक्टरों और अस्पताल कर्मचारियों के अंदर उबाल स्वाभाविक था।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चाहतीं तो त्वरित हस्तक्षेप कर स्थिति बिगड़ने से बचा सकतीं थीं। किंतु उन्होंने उल्टे डॉक्टरों के खिलाफ बयान दिया, उनके आंदोलन को भाजपा एवं माकपा द्वारा प्रायोजित बता दिया। इसके बाद आंदोलन पूरे प्रदेश एवं वहां से बाहर निकलकर देश भर में फैल गया। प्रदेश के 700 से ज्यादा डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया। पूरे पश्चिम बंगाल में यह धारणा आम है कि ममता एक विशेष समुदाय के अपराधों पर आंखें मूंदी रहतीं हैं और इस चलते पुलिस भी उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती। उनमें से बड़ा वर्ग उनकी पार्टी तृणमूल का नेता, कार्यकर्ता या समर्थक है। डॉक्टरों का भी यही मानना है। हालांकि डॉक्टरों ने ममता के सामने हड़ताल तोड़ने के लिए जो छह शत्रे रखीं, उन पर सरकार को तुरत अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी। उसमें डॉक्टरों के खिलाफ बोलने के लिए वो माफी नहीं भी मांगती तो अस्पताल आकर भर्ती घायल डॉक्टरों का हालचाल ले सकतीं थीं, हमलावरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का कागजात दिखा सकतीं थीं और भविष्य के लिए सुरक्षा देने के आश्वासन में भी कोई समस्या नहीं थी। किंतु अपने स्वभाव के अनुरूप वो अपनी जिद पर कायम रहीं। हालांकि बाद में वो थोड़ी झुकीं मगर स्वयं अस्पताल जाने की जगह डॉक्टरों को बुलाया। हालांकि इसका अंत जैसा भी हो, डॉक्टरों को भी इसका भान होना चाहिए कि कुछ अपराधियों के कारण उनके काम न करने से लाखों की जान पर बन आती है।



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