पुलवामा के बाद
फरवरी माह में पुलवामा में सुरक्षा बलों पर आतंकी हमले की प्रतिक्रियास्वरूप भारत द्वारा पाकिस्तान स्थित बालाकोट में आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने के बाद ऐसा लग रहा था कि कश्मीर में आतंकी गतिविधियां थम जाएंगी, लेकिन उसके बाद के अनुभव से यह धारणा कमजोर पड़ती दिख रही है।
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हालांकि पुलवामा हमले के बाद भी आतंकियों के साथ सुरक्षा बलों की मुठभेड़ होती रही थी, लेकिन दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में जिस प्रकार सीआरपीएफ की टुकड़ी पर अब हमला किया गया है, वह पुलवामा हमले की याद दिलाने के लिए काफी है। यह हमला व्यस्त सड़क पर घात लगाकर आतंकियों द्वारा किया गया, जिसमें सीआरपीएफ के पांच जवान मारे गए। हालांकि हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी समूह अल उमर मुजाहिदीन ने ली है, लेकिन ऐसा समझा जा रहा है कि इसके पीछे जैश-ए-मुहम्मद का हाथ है। यह वही जैश-ए-मुहम्मद है, जिसने पुलवामा हमले को अंजाम दिया था, जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान मारे गए थे। कहा जा सकता है कि कश्मीर घाटी में जैश-ए-मुहम्मद का पूरी तरह से सफाया नहीं हो सका है, लेकिन घटना का समय दो दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पहली बात तो यह कि एक जुलाई से अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है, जो इसी मार्ग से गुजरती है।
ऐसे में श्रद्धालुओं पर आतंकी हमले की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि बिश्केक में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की बैठक से ठीक पहले इस घटना को अंजाम दिया गया है। भारत के अलावा पाकिस्तान भी इस संगठन का सदस्य देश है। यह बैठक उस समय होने जा रही है, जब भारत-पाक के बीच वार्ता प्रक्रिया स्थगित है। पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों के तनावपूर्ण रिश्तों के बीच पहली बार भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आमने-सामने होंगे। यहां यह देखना होगा कि इस घटना का शंघाई सहयोग संगठन की बैठक पर कोई असर पड़ता है या नहीं। बहरहाल, पुलवामा हमले की पृष्ठभूमि में संपन्न हुए आम चुनाव के बाद भारी जन समर्थन से केंद्र में मोदी सरकार की वापसी हो चुकी है। राजनाथ सिंह की जगह गृह मंत्री बनाए जा चुके अमित शाह से लोगों की उम्मीद बढ़ चुकी है। फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने के लिए बढ़ाई जा चुकी है। ध्यान रहे यह जनादेश कश्मीर समस्या पर निर्णायक कार्रवाई के लिए है।
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