कानून बनें विधेयक
नरेन्द्र मोदी सरकार की दूसरी मत्रिमंडलीय बैठक में लिए गए निर्णयों से साफ है कि पूर्व सरकार के दौरान उठाए उन कदमों पर भी वह आगे बढ़ने को दृढ़ है जिनका विपक्ष ने विरोध किया था।
कानून बनें विधेयक |
एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) की परंपरा पर पाबंदी लगाने वाले नये विधेयक के प्रारूप को मंजूरी दिया जाना ऐसा ही है। सरकार दो बार तीन तलाक पर अध्यादेश लागू कर चुकी है। मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश 2019 के तहत एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य रहेगा और ऐसा करने वाले पति के लिए तीन साल के कारावास का प्रावधान रहेगा। जाहिर है, विधेयक हूबहू है जिसे दिसम्बर, 2018 में लोक सभा ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन यह राज्य सभा में लंबित था। मुसलमानों के अंदर कट्टरपंथियों ने इसके खिलाफ विरोध प्रदशर्न किए। इसके विपरीत अनेक मुस्लिम महिलाओं ने इसका समर्थन किया। इस विधेयक का कानून बनना इसलिए जरूरी है कि उच्चतम न्यायालय ने एक साथ तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित कर दिया लेकिन जमीन पर यह जाहिर रहा। जिन महलाओं को तलाक दिया गया वो उच्चतम न्यायालय के आदेश के साथ पुलिस थाने जातीं लेकिन पुलिस की समस्या थी कि मुदकमा दर्ज करे तो किस धारा में, क्योंकि कोई कानून था ही नहीं।
इसलिए न्यायालय के फैसले को साकार करने के लिए कानून बनना जरूरी है। दुर्भाग्य से कुछ राजनीतिक दलों ने कट्टरपंथियों के विरोध के आगे झुककर मुस्लिम मतों को ध्यान में रखते हुए विधेयक का समर्थन करने से इनकार कर दिया। राज्य सभा में अभी भी राजग का बहुमत नहीं है। वहां उसे विपक्ष का समर्थन चाहिए। हम उम्मीद करेंगे कि राजनीतिक लाभ-हानि से परे उठकर पार्टयिां महिलाओं को सशक्त करने वाले इस विधेयक को कानून बनाने में मदद करेंगी। ऐसे ही दो महत्त्वपूर्ण विधेयक और हैं। एक में जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वाले लोगों की प्रत्यक्ष भर्ती, पदोन्नति और विभिन्न पाठय़क्रमों में प्रवेश के लिए आरक्षण की बात है। इससे 435 गांवों के 3.5लाख लोगों को लाभ होगा। दूसरा, केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में विश्वविद्यालय को ईकाई मानकर नियुक्तियां करने तथा उनमें आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने से संबंधित विधेयक है। इसके कानून में परिणत होने के बाद नियुक्तियां आरंभ होगी। तो संसद के सत्र का इंतजार करें।
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