न्यायालय की सीख

Last Updated 13 Jun 2019 06:33:11 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशांत कन्नौजिया को गिरफ्तारी से मुक्त करने का आदेश दिया जाना बिल्कुल स्वाभाविक है। उसके ऊपर जो धाराएं लगाई गई वो जमानती हैं।


न्यायालय की सीख

उनमें गिरफ्तारी होनी ही नहीं चाहिए। पुलिस ने गिरफ्तार किया भी तो उसे जमानत दे दी जानी चाहिए थी। वास्तव में उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदेश के मुख्यमंत्री के चरित्र हनन का मामला मानकर इसको वीआईपी ट्रीटमेंट तो दिया लेकिन प्राथमिकी दर्ज की एकदम सामान्य धाराओं में। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने पुलिस को डांट लगाते हुए भी कन्नौजिया की प्राथमिकी रद्द करने की अपील स्वीकार नहीं की। उन पर मुकदमा चलेगा। पुलिस चाहे तो उन पर अन्य धाराएं लगा सकती है।

न्यायालय ने भी उनके ट्वीट एवं फेसबुक पोस्ट को अस्वीकार्य माना है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चरित्र हनन किया है, और उसे वायरल कराकर अपने गंदे इरादे का परिचय भी दिया है। उन पर कार्रवाई तो बनती है। वास्तव में उनके सोशल मीडिया अकाउंट को देखे तो उन्हें पत्रकार मानने पर सौ बार विचार करना पड़ेगा। वह जो कुछ लिखते आ रहे हैं, उसके आधार पर उनके खिलाफ एक धर्म के अपमान से लेकर लोगों की भावनाएं भड़काने, चरित्र हनन, निराधार झूठे आरोप जैसे अनेक मामले बनते हैं।

किंतु उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन सबको अपने मुकदमे का आधार बनाया ही नहीं। इनको सबक मिले यह तो जरूरी है किंतु उसका रास्ता क्या हो यह विचार करना पड़ेगा। दुर्भाग्य तो यह है कि उनके नाम पर पत्रकारों का एक वर्ग झंडा लेकर उतर गया। मामला न्यायालय तक ले जाने वाले भी खड़े हो गए। अगर उन्हें अकेले लड़ना होता तो उच्चतम न्यायालय के लिए वकील को फीस देना भी उनके लिए शायद ही संभव होता। जाहिर है, योगी आदित्यनाथ और केंद्र सरकार का मामला होने के कारण सब कुछ हो गया। हमारा मानना है कि ऐसे व्यक्ति को महत्त्व नहीं मिलना चाहिए। किंतु एक वर्ग यदि रु ग्नता भरे ट्विीट, फेसबुक कमेंट या वीडियो को शेयर करने लगता है तो इसके पीछे योजनाबद्ध मस्तिष्क की बू आती है।

ऐसे में उसे नजरअंदाज करना मुश्किल होता है। आखिर, वो लोग कौन हैं, जो जानते हुए भी कि योगी को बदनाम करने के लिए एक महिला को खड़ा किया गया, प्रशांत के कमेंट को फैलाने लगे? बावजूद इसके ऐसे मामलों में कानूनी सीमाओं के अंदर ही कार्रवाई होनी चाहिए। पुलिस बड़े नेताओं का मामला देखकर कई बार सीमाएं लांघ जाती है, और मामला न्यायालय में औंधे मुंह गिर जाता है।



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