सामाजिक चेतना की जीत

Last Updated 11 Jun 2019 12:09:53 AM IST

समूचे देश को स्तब्ध कर देने वाला कठुआ के सामूहिक बलात्कार मामले में पठानकोट के सेशन कोर्ट ने अपराधी घोषित किये गये तीन लोगों को उम्र कैद और तीन अन्य अपराधियों को पांच-पांच साल की कैद की सजा सुनाई है।


सामाजिक चेतना की जीत

यह नृशंस कांड तब चर्चा में आया था जब जम्मू-कश्मीर के कठुआ में बंजारा मुस्लिम समुदाय की एक आठ वर्षीय अबोध बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी गयी थी।

सामाजिक राजनीतिक दृष्टि से कठुआ हत्याकांड का दुखद पहलू यह भी है कि इस मामले की जांच में जब यह तथ्य सामने आया कि बच्ची मुस्लिम बंजारा समुदाय की है और बच्ची का बलात्कार करने वाले हिन्दू समुदाय के हैं तब जम्मू के कई हिन्दू संगठन आरोपितों के पक्ष में सड़कों में उतर आये थे। हद तो तब हो गई जब स्थानीय वकीलों के एक समूह ने क्राइम ब्रांच टीम को चार्जशीट दाखिल करने से रोकने की कोशिश की। लेकिन दूसरी ओर इन संगठनों के रुख को नजर-अंदाज करते हुए भारत का समूचा नागरिक समाज इस बलात्कार के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ था।

बलात्कार चाहे जिस समूदाय की लड़की के साथ हुआ हो या चाहे जिस समुदाय के लोगों ने किया हो, यह जघण्य अपराध है। वस्तुत: यह मनुष्यता के प्रति अपराध है जिसे किसी भी धर्म या जाति के आवरण के नीचे नही ढका जा सकता। बलात्कार जैसे मामले में जो लोग धर्म या जाति के नाम पर अपराधियों के साथ सहानुभूति प्रदर्शित करते दिखते है वे बलात्कारियों से बड़े अपराधी है।

बलात्कार की इस दुखद पृष्ठभूमि में संतोष की बात यह है कि भारत का वृहत्तर नागरिक समाज अपनी चेतना पर धर्म, जाति का पर्दा पड़ने नहीं देता। हमें यह याद रखना चाहिए कि कठुआ बलात्कार के मामले में भी देश का नागर समाज और देश का मुख्यधारा का मीडिया बच्ची के परिवार के साथ खड़ा हुआ था और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहा था। यह नागर समाज का ही दबाब था कि सभी अपराधियों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें देश के दंड विधान के सामने खड़ा किया गया।

तक कि जिन्होंने इस अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश की थी और अपराधियों को बचाने की कोशिश की थी उनके सारे प्रयासों को असफल कर दिया गया। कठुआ मामले में कोर्ट का जो फैसला आया है वह वास्तव में भारत की सामाजिक चेतना की जीत है। यह चेतना सुनिश्चित करती है कि बलात्कार का अपराधी चाहे जो हो और चाहे जिस वर्ग का हो उसे दंड से वंचित नहीं रखा जा सकेगा।



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