महत्वकांक्षा का संघर्ष
सत्रहवीं लोक सभा के चुनाव के नतीजे आने में अभी एक सप्ताह की देर है, और विपक्षी दलों के विभिन्न नेताओं के बीच राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा का संघर्ष तेज हो गया है।
महत्वकांक्षा का संघर्ष |
विपक्षी नेताओं का अनुमान है कि चुनाव नतीजे न तो किसी पार्टी के पक्ष में आएंगे और न ही किसी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलेगा। खंडित जनादेश की उम्मीद में तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव कांग्रेस के समर्थन से तीसरे मोच्रे की सरकार बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं। इस सिलसिले में उनकी तेलुगू देशम के नेता और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू तथा द्रमुक के नेता स्टालिन से मुलाकात हुई।
के. चंद्रशेखर राव की कांग्रेस के समर्थन से तीसरे मोच्रे की सरकार बनाने की कोशिशें अंतर्विरोधों से भरी हुई हैं क्योंकि चंद्रबाबू नायडू और स्टालिन, दोनों नेताओं का मानना है कि सरकार कांग्रेस के नेतृत्व में ही बननी चाहिए। अब ऐसे में के. चंद्रशेखर राव की कोशिशों के क्या नतीजे आएंगे, इसका सहज अनुमान कोई भी लगा सकता है। अभी पिछले दिनों चंद्रबाबू नायडू की मायावती और ममता बनर्जी से मुलाकात हुई थी।
नायडू अंतिम चरण के चुनाव तुरंत बाद विपक्षी दलों की बैठक करना चाहते थे। ममता और मायावती, दोनों सिद्धांत: विपक्षी एकता के सवाल पर पूरी तरह सहमत हैं, लेकिन उनका मानना है कि अंतिम नतीजे आने के बाद जब तस्वीर साफ हो जाए तब इस तरह की कोई बैठक होनी चाहिए। यदि भाजपा और उसकी अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए को बहुमत नहीं मिल पाता है, तो जाहिर है कि क्षेत्रीय दलों का महत्त्व बढ़ जाएगा। ये क्षेत्रीय दल चुनाव से पहले भाजपा के विरुद्ध महागठबंधन बनाने की कोशिशों में लगे हुए थे लेकिन महत्त्वपूर्ण राज्यों में वृहत्तर विपक्षी एकता कायम नहीं हो सकी।
विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इस सवाल को लेकर भी दुविधा बनी हुई है। यदि चुनाव से पहले विपक्ष ने इस सवाल को हल कर लिया होता तो नरेन्द्र मोदी का विकल्प देने की उसकी विसनीयता बढ़ जाती। हालांकि इसके खतरे भी थे क्योंकि अगर विपक्ष किसी का नाम घोषित कर देता तो विपक्ष के ही कुछ दूसरे नेता इस नाम का विरोध करना शुरू कर देते। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि विपक्षी खेमा प्रधानमंत्री पद के लिए किसी एक नाम पर आसानी से सहमत होगा।
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