संबंधों की समीक्षा

Last Updated 05 Apr 2019 06:12:53 AM IST

सत्रहवीं लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जम्मू-कश्मीर बहस का केंद्रीय मुद्दा बना हुआ है।


संबंधों की समीक्षा

हाल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि राज्य सभा में बहुमत नहीं होने से अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाया नहीं जा सका। लेकिन भाजपा को 2020 तक बहुमत मिल गया तो इसे हटा दिया जाएगा।

उनके बयान पर पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए को समाप्त करने की डेडलाइन 2020 है, तो उसी दिन जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ रिश्ता खत्म हो जाएगा। भाजपा अनुच्छेद 370 और 35-ए को लेकर मुखर है, और यह उसका पुराना मुद्दा है। उम्मीद है कि इस बार भी अपने चुनाव घोषणा पत्र में भाजपा इस मुद्दे को प्रमुखता से शामिल करेगी।

भाजपा ऐसा करती है, तो इसकी समीक्षा करने का भी उसे पूरा अधिकार होगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली इस अनुच्छेद को तात्कालिक व्यवस्था मानते हैं। उनका मानना है कि पिछले सत्तर सालों में अनुच्छेद 370 और 35-ए के प्रभाव की समीक्षा की जानी चाहिए कि इसके कारण जम्मू-कश्मीर के साथ भारत की दूरी बढ़ी है, या कम हुई है। जेटली के इस विचार को महज राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। सभी जानते हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने में संवैधानिक प्रावधान बहुत बड़ी बाधा है।

इसलिए लगता नहीं है कि भाजपा इस अनुच्छेद को हटाने में सफल हो पाएगी। लेकिन इसकी समीक्षा तो होनी ही चाहिए कि अनुच्छेद 370 का भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण में योगदान रहा है, या नहीं। दरअसल, पहला अवसर है जब आम चुनाव के दौरान सीमा पार आतंकवाद, बालाकोट और कश्मीर का मुद्दा छाया हुआ है। कांग्रेस ने भी अपने घोषणा-पत्र में कश्मीर और आतंकवाद को शामिल किया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान, आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के खिलाफ तीखा रवैया अपनाया है। इससे कश्मीर के नेताओं में इस बात को लेकर आशंका है कि मोदी दोबारा सत्ता में आते हैं, तो अगले पांच साल में घाटी के प्रति उनका क्या रुख होगा। नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला इसी घबराहट में जम्मू-कश्मीर में पुरानी व्यवस्था लागू करने की बात कर रहे हैं। घाटी में सीमापार आतंकवाद और अलगाववाद को समाप्त करने के लिए सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होना चाहिए।



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