रुख में बदलाव नहीं
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की लखनऊ स्थित नदवा कॉलेज में संपन्न कार्यकारिणी की आपात बैठक से आ रहीं खबरों को मानें तो अयोध्या मामले पर मध्यस्थता के परिणामों को लेकर अच्छे संकेत नहीं हैं।
रुख में बदलाव नहीं |
अगर बाबरी मस्जिद को लेकर इनका स्टैंड बदलने की संभावना ही नहीं है तो फिर मध्यस्थता सफल नहीं हो सकती। बोर्ड का पिछले लंबे समय से स्टैंड रहा है कि बातचीत का कोई मतलब नहीं है, केवल न्यायालय ही इस पर फैसला दे सकता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल गठित करने के बाद इनको अपना यह रु ख बदलने पर विवश होना पड़ा है। ऐसा न करते तो आरोप लगता कि समस्या का आम सहमति से समाधान नहीं चाहते।
जाहिर है, इसके बाद इनके सामने मुख्य प्रश्न है कि मध्यस्थता में वो अपना पक्ष कैसे रखें? क्या तर्क दें? पैनल अयोध्या में 27 मार्च से बातचीत शुरू कर रहा है। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी की अध्यक्षता में काफी देर तक मंथन चलता रहा। इसका अर्थ यही है कि अंतिम निर्णय को लेकर शायद एक मत नहीं था। वस्तुत: बोर्ड के कुछ सदस्य मामले का समाधान चाहते हैं, और लचीला रु ख अपनाने के पक्षधर भी हैं। पर इस पर प्रभावी वर्ग ऐसा होने नहीं देता। उसका मानना है कि वह जमीन बाबरी मस्जिद की है और किसी को सौंप नहीं सकते।
तर्क यह भी है कि हमने मंदिर के लिए जमीन सौंप दी तो आगे काशी और मथुरा का मामला भी उठेगा। यह कहकर वे अन्य सदस्यों को चुप करा देते हैं। सही है कि हिंदू संगठन अयोध्या के साथ काशी एवं मथुरा की भी मांग कर रहे हैं। इससे वे पीछे नहीं हटेंगे। किंतु उनकी यह भी घोषणा है कि इन तीनों के अलावा वे किसी स्थान पर विवाद पैदा नहीं करेंगे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे ध्यान में रखे तो आराम से समझौता हो सकता है। वैसे, अभी मामला केवल अयोध्या का है। शेष दो मामले तो न्यायालय में हैं नहीं।
इन्हें नहीं भूलना चाहिए कि ये दो मामले आ गए तो भी न्यायालय फैसला तथ्यों के आधार पर ही करेगा। इसे अयोध्या विवाद से जोड़कर देखना उचित नहीं है। हमारा आग्रह होगा कि मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता पैनल के साथ सहयेग करे। यदि ऐतिहासिक तथ्य इनके पक्ष में नहीं है तो इसे दिल से स्वीकारने की उदारता दिखाए। इससे समाज में सद्भावना का संदेश जाएगा। ऐसा नहीं करने पर अंतिम विकल्प तो न्यायालय है ही।
Tweet |