कांग्रेस पर हमलावर माया
बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस को बहुत ही सख्त लहजे में कहा है कि वह जनता को भ्रमित न करे।
कांग्रेस पर हमलावर माया |
यह भी कि उसके साथ बसपा का कोई गठबंधन नहीं है। मायावती का बयान कांग्रेस को अपमानित करने जैसा लगता है। बसपा सुप्रीमो अपने समर्थकों समेत किसी के भी मन में यह भ्रम नहीं आने देना चाहती कि वह प्रधानमंत्री पद की दावेदार नहीं हैं। राजनीति के गणित में हमेशा दो और दो चार नहीं होता। राजनीति में दो और दो पांच भी हो सकता है। मायावती संभावनाओं के इसी गणित के आधार पर काम कर रही हैं। निसंदेह उत्तर प्रदेश में बसपा-सपा का गठबंधन बहुत ताकतवर राजनीतिक-जातीय समीकरण है।
यहां की 80 लोक सभा सीटों पर बसपा 38 और सपा 37 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी हैं। शेष तीन सीटों से अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल पार्टी चुनाव लड़ेगी। अगर इस गठबंधन को 50 से लेकर 55 सीटों पर सफलता मिल जाती है तो यह खेमा बहुत ही प्रभावशाली होकर उभरेगा। विशेषकर ऐसी स्थिति में जब भाजपा समर्थित एनडीए बहुमत प्राप्त करने में विफल रह जाता है। अगर लोक सभा का चुनाव परिणाम ऐसा ही आया तो मायावती की सौदेबाजी की ताकत बढ़ जाएगी। उनके लिए भी प्रधानमंत्री बनने का यह अंतिम अवसर है।
इसलिए कि मायावती और अखिलेश कब तक एक दूसरे का हाथ पकड़े रहेंगे, कहना मुश्किल है। राजनीति का गणित इसी आधार पर चलता है कि कोई न तो स्थायी मित्र और न ही स्थायी शत्रु। जाहिर है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को कमजोर करने का हर स्तर पर प्रयास कर रही है। कांग्रेस ने बसपा-सपा गठबंधन के लिए सात सीटें छोड़ने को सद्भावना संकेत बताया है। हालांकि मौजूदा दौर की क्षुद्र राजनीति में इसका कोई अर्थ नहीं है। वास्तव में बसपा-सपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को सद्भावना संकेत दे रहे हैं।
मायावती और अखिलेश के गठबंधन ने भी कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली से अपने प्रत्याशी खड़े नहीं करने का फैसला किया है। यहां से क्रमश: राहुल गांधी और सोनिया गांधी चुनाव लड़ती हैं। इसका आशय है कि मायावती कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन सकती हैं। इसी तरह, राहुल गांधी को भी मायावती का समर्थन चाहिए। अत: दोनों ओर से सद्भावना संकेतों के आदान-प्रदान का राजनीतिक आशय यही है कि एक दूसरे का समर्थन पाने का नैतिक आधार बना रहे।
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