फिर दीवार बना चीन

Last Updated 15 Mar 2019 06:41:54 AM IST

जैश ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तरफ से वैश्विक आतंकी घोषित करने की कोशिश में चीन फिर दीवार बन गया।


फिर दीवार बना चीन

ऐसा उसने एक दशक में चौथी बार किया है। सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड की तरफ से लाया गया था। इसकी आशंका थी कि चीन मसूद अजहर को बचाने के लिए कोई न कोई दांव या चालबाजी कर सकता है। ऐसा ही हुआ और उसने प्रस्ताव पर ‘टेक्निकल होल्ड’ लगा दिया। इसकी वैधता छह महीने तक है और इसे तीन महीने तक के लिए बढ़ाया भी जा सकता है। मसूद अजहर भारत में अनेक आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार है। उसके खिलाफ इसके पुख्ता सबूत भी हैं। लेकिन चीन इसे मानने के लिए तैयार नहीं है। अजहर 14 फरवरी को पुलवामा में फिदायीन हमले के लिए जिम्मेदार है। हालांकि चीन का वर्तमान नेतृत्व आतंकवाद के सभी स्वरूपोें की घोर निंदा करता है। लेकिन यह सवाल अहम है कि आतंकवाद के खिलाफ इतनी मजबूती से अपनी बात रखने वाला चीनी नेतृत्व आखिर क्यों अजहर की मदद करता है? वास्तविकता यह है कि चीन को दक्षिण एशिया की राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखना अनिवार्य है।

इस क्षेत्र में बीजिंग भारत को अपना प्रतिस्पद्र्धी मानता है और यह वास्तविकता भी है क्योंकि नई दिल्ली ही बीजिंग के वर्चस्ववादी रवैये को रोक सकता है। जाहिर है कि चीन का यह भय उसे पाकिस्तान के साथ गठजोड़ करने के लिए मजबूर करता है। चीन को मालूम है कि अस्थिर भारत बीजिंग की राह नहीं रोक सकता और इसलिए वह पाकिस्तान के आतंकी समूहों के जरिये नई दिल्ली को अस्थिर करता रहता है। चीन का समर्थन पाने के बदले पाकिस्तान इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के वैश्विक मंच पर भी बीजिंग का समर्थन करता है। चीन इन दोनों संगठनों का सदस्य नहीं है। यहां पाकिस्तान चीन का प्रवक्ता बनकर उसकी मदद करता रहता है। पिछले दिनों सम्पन्न ओआईसी की बैठक में चीन के उइगर मुसलमानों के साथ होने वाले अत्याचार की बात उठी थी तो पाकिस्तान ने बीजिंग का बचाव किया था। यह अच्छी बात है कि सीमा पार आतंकवाद के मसले पर अमेरिका भारत के साथ है। भारत को चाहिए कि वह आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई के लिए पाकिस्तान पर पूरी तरह कूटनीतिक दबाव बनाये रखे।



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