बाढ़ का कहर
बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहे हैं. बाढ़ से लाखों लोग बेघरबार हुए हैं और 90 लोग मर गए हैं.
बाढ़ का कहर |
पूरे देश में बाढ़ वैसे तो सालाना और अपरिहार्य रिवाज हैं. लेकिन इस बार बाढ़ की तबाही ने सदी का रिकार्ड तोड़ और लगभग अनवरत बरसात भी कहर बरपा रही है. इससे हिमालय से निकलने वाली इन नदियों में उफान बराबर बना हुआ है. बिहार बाढ़ से ज्यादा पीड़ित है. वहां 56 लोग मरे हैं तो 13 जिलों के 69.81 लोग विस्थापित हैं.
असम के 32 में से 25 जिले बुरी तरह पीड़ित हैं. यहां 10 लोग मारे गए हैं. बंगाल के पांच जिले लबालब हैं तो सात लोग मर गए हैं. हालांकि नुकसान का आर्थिक आकलन बाकी है,
लेकिन राज्यों की अर्थव्यवस्था पर ये क्षति भारी पड़ने वाली है. प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर में बाढ़ से राहत, पुनर्निर्माण और पुनर्वास मद में 2000 हजार करोड़ रुपये दिये हैं. लेकिन पहले 100 करोड़ के खर्च से एक कमेटी बनाई जाएगी जो बाढ़ के कारणों ओैर उसके नियंत्रण के उपाय सुझाएगी. दरअसल, बाढ़ नियंत्रण के तरीकों को विपदा प्रबंधन में बदलने की आवश्यकता है.
अब तक बाढ़ को बांधने के लिए जिस डैम को रक्षात्मक माना गया था, अबकी बाढ़ उस गारंटी को जहां-तहां मीलों बहा ले गई है. केवल बांध बना कर उसको अजर-अमर मान कर बैठ जाने या उसकी मरम्मत का समुचित प्रबंध न कर पाने में इस तबाही में बड़ा हिस्सा है. टूट के खतरों की शिनाख्त कर उनकी पुख्ता मरम्मत की जाए. दूसरी अहम बात.
बाढ़ में फंसे लोगों तक राहत समुचित रूप से त्वरित पहुंचाने में हमारी मशीनरी को मानवीय होना अभी बाकी है. यही वजह है कि पीड़ित लोग दाना-पानी नहीं हासिल होने की शिकायत आंसुओं से कर रहे हैं. यह तो इंसानों की हालत है. उनके पशुधन को चारा-पानी की किल्लत की बात पर कोई तैयारी नहीं है. पानी चूंकि अभी घटने का नाम नहीं ले रहा है तो उसके मद्देनजर ही इंतजाम करना होगा.
सरकारें अपनी तरफ से बेहतर कर ही रही होंगी. लेकिन बाढ़ के आने और जाने के बीच बीमारियों से बचाव भी उनकी चुनौती है. यह दाना-पानी और चारा-पानी के इंतजाम की तरह ही हैं. बेहतर होगा कि बाढ़ से बचाव के सभी कार्यों में एक समन्वय स्थापित किया जाए ताकि प्रत्येक वर्ष की बाढ़ पीड़ितों को राहत देने में व्यवस्था की कलई न खुले.
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