बेचैन चीन
चीन भारत के बीच तनाव कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. डोकलाम से शुरू हुआ तनाव पहले उत्तराखंड और अब लद्दाख में चीनी सेना की घुसपैठ से ज्यादा तेजी से बढ़ता जा रहा है.
बेचैन चीन |
16 जून से भारतीय और चीनी सेना डोकलाम में डटी हैं. चीन ने अपनी चिर-परिचित हिकमत से भारत को दबाव में लेने की पूरी कोशिश भी की.
मगर भारत को चीनी पैंतरेबाजी से कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने बेहद सधे अंदाज में चीन की हर चाल का जवाब भी दिया. हालांकि, दोनों ही देश जानते हैं कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है, इसके बावजूद चीन की हरकत यह बताने को काफी है कि पड़ोसी मुल्क के साथ उसका बर्ताव कितना सच्चा है?
जानकार बताते हैं कि डोकलाम में चीन की गतिविधियां महज सड़क निर्माण करना भर नहीं हैं बल्कि भारत को घेरने के लिहाज से ज्यादा अहम हैं. यही वजह है कि चीन डोकलाम को इज्जत का सवाल बना बैठा है और भारत को हर तरफ से दबाने की रणनीति जारी रखे है. अब ब्लड बैंक को तिब्बत में शिफ्ट करने की खबर से एक बार फिर दोनों मुल्क में तनाव बढ़ा है.
हालांकि भारत ने 1962 जैसा भारत नहीं होने का बयान देकर न केवल चीन बल्कि कई दुश्मन मुल्कों को यह जतला दिया कि वह भारत को नुकसान पहुंचाने से पहले अच्छे तरीके से सोच-विचार ले. अभी तक की चीन की कसरत से इतना तो बखूबी इल्म हो जाता है कि चीन अपनी रणनीति और कूटनीति में पूरी तरह से फेल हुआ है. उसे रत्ती भर भी मालूम नहीं होगा कि भारत इस बार उसे हर मोच्रे पर पटखनी देगा.
जब चीन को कोई रास्ता नहीं सूझा तो उसने अब लद्दाख की तरफ से भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की. भारतीय सेना के खदेड़े जाने के बाद अब वह पूरी घटना के होने से ही इनकार कर रहा है. भारतीय पक्ष की इस मायने में भी दाद देनी होगी कि वह चीन की हर कुटिलता के बरक्स उसी तरीके से जवाब दे रहा है. इसके बावजूद भारत को हर पल चौकस रहने की जरूरत है.
साथ ही आसियान देशों के साथ अपने पक्ष को मजबूती देने के लिए उसे जापान, इंडोनेशिया, वियतनाम, ताइवान और ऐसे समझदार देशों के साथ रिश्तों को मजबूती देनी होगी. साथ ही, अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को कमजोर नहीं होने देना होगा. कहने का मतलब है कि भारत को वैसे सभी राष्ट्र के साथ संबंधों को नया और उदार रिश्ता बनाना होगा, जिनके साथ चीन का छत्तीस का रिश्ता है. चीनी सामानों की आमद पर भी सख्ती करनी होगी. ऐसा करने पर चीन के अक्ल ठिकाने आएंगी.
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